बूँद और मोती
बहुत दिनों बाद उसको देख कर वह किलक पड़ी : अरे !तुम ... कितने दिनों बाद मुलाकात हुई है और ये क्या ... तुम मुझसे इतने अलग कैसे लगने लगे
मोती : मतलब ?
बूँद : आसमान से तो हम दोनों ने साथ ही यात्रा शुरू की थी ।
मोती : हाँ ! की तो थी ...
बूँद : फिर तुम में इतनी चमक भर गई और मैं ...
मोती : ना बहन दिल छोटा नहीं करते
बूँद : नहीं ... नहीं ... तुम मुझसे सच - सच बताओ न ये कैसे हुआ ?
मोती : बताऊँ !
बूँद : और क्या ... कबसे पूछ रही हूँ और तुम बता ही नहीं रहे हो । अच्छा समझ गयी सब तुमको ही तो अपने पास रखना चाह रहे हैं और सराह भी रहे हैं । और मैं ... मुझे तो गलती से भी उनके ऊपर पड़ जाने पर झटक देते हैं ।
मोती : फिर वही बेकार की बातें कर रही हो ।
बूँद : समझ गयी ,तुम चाहते ही नहीं हो कि मैं खुद को सुधारूँ ...
मोती : तुम भी ... जानती हो हममें यह अन्तर परिवेश की वजह से आया है । मैं सीप में चला गया तो मोती बन गया और तुम दरिया में मिल कर जीवनदायिनी बन गयी ।
बूँद : जीवनदायिनी
मोती : और क्या ... कभी तुम प्यास बुझा जाती हो तो कभी फसल को सींच देती हो ...
बूँद : हाँ ! यह तो है
मोती : आज तुमको मेरी चमक आकर्षित कर रही है पर जानती हो मुझको तो कुछ पलों के लिये पहनने को निकालते हैं ,नहीं तो बाकी समय तो तिजोरी में ही मेरा दम घुटता रहता है ।
बूँद : तुम्हारा दम घुटता है ?
मोती : हाँ ! और तुम देखो कितनी मुक्त हो हवा के झूले पर सवार हो कर धरती आकाश सब घूमती हो ।
बूँद : शायद हम में भी इन्सानी प्रवृत्ति आ गयी है । दूसरों का जीवन ही अधिक अच्छा और आकर्षक लगता है ।
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
वाह बहुत ही अद्भुत लेख । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंरंग रूप के आकर्षण का क्या करना बूँद की स्वतंत्रता और कर्म श्रेष्ठ हैं...।