सोमवार, 9 सितंबर 2019

प्रश्नोत्तर के घेरे में ज़िन्दगी ....

एक प्रश्न है जिंदगी से और उस प्रश्न का उत्तर देती हुई जिंदगी है ...

चुप सी जिंदगी ..

हर साँस बस एक सवाल पूछती है
ज़िन्दगी तू ऐसे चुप सी ज़िंदा क्यों है ?

क्या साँसों का चलना ही है ज़िन्दगी
हर कदम लडखडाती अटकती
मोच खाए पाँव घसीटती है ज़िन्दगी !

कभी दीमक तो कभी नागफनी
बातों और वादों की फांस लिए
अब तो हर डगर अटकाती ज़िन्दगी !

कभी मान तो कभी थी जरूरत
अब तो हर पल घुटती साँसों में
ज़िन्दगी का कर्ज़ उतारती है ज़िन्दगी !
                                   
उत्तर देती जिंदगी ...

एक पल जन्म दूसरे पल मौत है ज़िन्दगी
सिर्फ साँसों का आना जाना नहीं है ज़िन्दगी

जीने को तो बरसों जी गए
हर पल मर मर के जी गए
मासूम सी मुस्कान पर मर गये
यादों में जिंदा रहना है ज़िन्दगी
सिर्फ साँसों का .....

कभी सहारा बनते गए
कभी लड़खड़ा कर सहारा पा गए
हर साँस कदम बढ़ाते चले गये
कभी बैसाखी कभी रेस है ज़िन्दगी
सिर्फ साँसों का ....

जीने को तो सब ही हैं जीते
पीने को तो अश्क भी हैं पीते
सीले पलों में सपनों को हैं सीते
मौत के बाद भी जिंदा है ज़िन्दगी
सिर्फ साँसों का ....
                      ... निवेदिता

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... इस प्रश्न और जवाब से जिंदगी के फलसफे सुलझाने का प्रयास ...
    बहुत लाजवाब ...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-09-2019) को    "मजहब की बुनियाद"  (चर्चा अंक- 3455)    पर भी होगी।--
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3.  जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जीने को तो सब ही हैं जीते
    पीने को तो अश्क भी हैं पीते
    सीले पलों में सपनों को हैं सीते
    मौत के बाद भी जिंदा है ज़िन्दगी
    सिर्फ साँसों का।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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