बुधवार, 18 सितंबर 2019

सपनें ....

ओ अधमुँदी सी पलकों
ढुलक भी जाओ
कि नींद आ जाये
नींद से सपनों का
कुछ तो नाता है
और ...
सपने ही तो देखने हैं
शायद ...
मुंदी पलकों तले के सपने
तुम्हारी झलक लायेंगे
और मैं जी उठूंगी ... निवेदिता

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (19-09-2019) को      "दूषित हुआ समीर"   (चर्चा अंक- 3463)     पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सपने ही तो ज़िन्दगी का सार भी हैं और आधार भी...

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