शनिवार, 20 सितंबर 2025

रुसवाई न होती ...

 उम्र झूठ की तुमने बताई न होती ।

वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।


सूरज भी झुलसा होगा तन्हाई में 

अंधेरा सोया रहा मन की गहराई में ।

चाँद ने चाँदनी बरसाई न होती 

वफ़ा की भी यूँ कभी रुसवाई न होती ।।


नयन बोलते रह गए मन की अंगनाई में 

तारे भी हँस पड़े अम्बर की अमराई में ।

शब्दों ने यूँ वल्गा लहराई न होती

वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।


तन ऐसे चल रहा लम्हों की भरपाई में

मन क्यों डूब रहा उम्र की गहराई में ।

रस्मों में उलझन समायी न होती 

वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।

✍️निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

     लखनऊ 

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

जीवन घट अबूझ पिया ...

 जीवन घट अबूझ पिया 

बाट तके बिरही मनवा।

राह निहारे बिरहन जिया

पतझड़ जीवन बिन पिया रे!


अगम अबूझ ढुलक चली है

शुष्क नयनों की प्यास छली है।

अम्बर ओढ़े बदली का आँचल

बैरी चुनरिया झीनी बड़ी है!


कान्हा सा मन छलिया बड़ा है

तुम संग चलने व्याकुल खड़ा है।

घुंघरू सा मन रास रचाये

महारास को मन मलंग ये गाये!

✍️ #निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

      #लखनऊ

बुधवार, 10 सितंबर 2025

विदाई : एक चाहत

 विदाई


विदाई शब्द से ही, दो लम्हे अनायास ही दस्तक देने लगते हैं ... एक तो बेटी की विदाई और दूसरी इस दुनिया से, परन्तु जब चित्त सुस्थिर हो कर मनन करता है तब तो न जाने कितने ही पल याद आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी व्यक्ति, सम्बंध अथवा स्थान से स्वयं को अलग होते पाते हैं। कभी माँ के गर्भ में आने से पहले पूर्व जन्म के सम्बन्धियों से विदाई तो कभी हमसे भी अधिक हमको जाननेवाली माँ के गर्भ से, तो कभी घर से निकल कर माता पिता की उँगली थामे स्कूल को जाते हुए हम होते हैं। वहीं कभी ज़िन्दगी की आँखों में आँखें डालने की तैयारी में माता पिता के थामे रहने वाले हाथों से पकड़ की विदाई। घर, शहर, पितृ सदन से एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय के लिए अथवा जीवन से ऐसे न जाने कितने पल होते हैं विदाई के, जो हम को एक से विलग कर के दूसरे स्थान पर ले जाते हैं।

विदा के पल बेहद पीड़ा भरे भी होते हैं, तब भी कभी-कभी मन बावरा हो कर इसी की चाहत करने लगता है। माया मोह के बन्धन में जकड़ा हुआ मन जैसे ही दुनियादारी की तन्द्रा से जाग्रत होता है, इन नश्वर बन्धनों के सत्य के निकट पहुँचने लगता है, वह इन सब से विदा होने की चाहत में जल बिन मीन सा छटपटा उठता है और चाहता है इन सब से विदाई!

विदाई के बारे में मेरी एक बहुत ही छोटी सी चाहत है कि इस दुनिया से विदा होते समय ही, सभी के दिल दिमाग से भी मेरी यादों की विदाई हो जाये ... यहाँ के नाते, रिश्ते, कर्म सब से मुक्त हो जाऊँ। आत्मा को मोक्ष मिलेगा या नहीं, यह नहीं जानती बस इतनी सी चाहत है कि यहाँ का हिसाब किताब यहीं निबट जाए और यदि नया जन्म होता है तो कोरी स्लेट सा हो ... किसी के, किसी भी कर्म की उधारी चुकाने / वसूलने के लिए नहीं।

भोलेनाथ! मेरी इस चाहत को पूरा करने की जिम्मेदारी तुम्हारी🥰
✍️निवेदिता श्रीवास्तव निवी
     लखनऊ

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

देख रही मैं सपन अनोखे ...

 देख रही मैं सपन अनोखे

आ पहुँची प्रिय प्रणय की बेला!

निशा भोर की गैल चली है
तारों ने तब घूँघट खोला।
मन्द समीर उड़ाये अंचल
रश्मि किरण का मन है डोला।
पागल मन हो जाता विह्वल
रोज सजाता जीवन मेला !

माया में मन भटक रहा है
पल-पल करता जीवन बीता।
अनसुलझी परतों के भीतर
जीवन का हर घट है रीता।
अंत समय जब लेने आया
मन फिर से हो गया अकेला !

बन्द नयन वह खोल रहा है
सच जीवन का बतलाने को।
रिश्ते-नाते तोल रहा है
उलझी गाँठें सुलझाने को।
रहा अकेला चला अकेला
मन सा सूना बचा तबेला !
✍️निवेदिता श्रीवास्तव निवी
    लखनऊ