शनिवार, 20 सितंबर 2025

रुसवाई न होती ...

 उम्र झूठ की तुमने बताई न होती ।

वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।


सूरज भी झुलसा होगा तन्हाई में 

अंधेरा सोया रहा मन की गहराई में ।

चाँद ने चाँदनी बरसाई न होती 

वफ़ा की भी यूँ कभी रुसवाई न होती ।।


नयन बोलते रह गए मन की अंगनाई में 

तारे भी हँस पड़े अम्बर की अमराई में ।

शब्दों ने यूँ वल्गा लहराई न होती

वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।


तन ऐसे चल रहा लम्हों की भरपाई में

मन क्यों डूब रहा उम्र की गहराई में ।

रस्मों में उलझन समायी न होती 

वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।

✍️निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

     लखनऊ 

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