गुरुवार, 12 नवंबर 2020

संवाद : पोटली और हाथ का


आगे - पीछे झूलता हुआ हाथ आँखों के चंचल इशारे पर रुक कर ,पोटली उठाने को लपका ही था कि पोटली बोल पड़ी 


पोटली : रुको ! 


हाथ : क्यों ?


पोटली : क्या मैं तुम्हारी हूँ 🤔


हाथ : पता नहीं 😏


पोटली : फिर मुझे देखते ही मुझ पर आधिपत्य जमाने की तुममें लालसा क्यों जाग गयी😎


हाथ : अरे ! तुम सड़क पर पड़ी हुई हो ,जिसकी निगाह पड़ेगी ,वही तुमको ले जायेगा ।


पोटली : गलतफ़हमी मत पालो । मुझ पर किसी की नेमप्लेट नहीं लगी होने का मतलब ये नहीं है कि किसी का भी अधिपत्य मुझको स्वीकारना पड़ेगा । 


हाथ : तुम भी इस गुमान में मत रहना कि तुम इस समाज में ... वी भी हमारी प्रधानता वाले समाज में ऐसे अकेली और सुरक्षित रहोगी ।


पोटली : मतलब क्या है तुम्हारा ? क्या मेरी इच्छा और अस्तित्व का कोई अर्थ ही नहीं है ? 


पोटली : अरे ओ पोटली ! तू और तेरी इच्छा है किस चिड़िया का नाम ... तू कितने अच्छे से सँवरी हुई इस आकर्षक कपड़े में लिपटी हुई मुझको भा गयी है और अब तुझ पर मेरा अधिकार है ।


पोटली : तेरी इतनी हिम्मत कैसे हुई ? मुझको इतना कमजोर समझने की भूल मत करना । 


हाथ : अच्छा ! तू कर क्या लेगी मेरा ... तुझको अपने मन की करनी थी तो अपने घर में छुप कर बैठी रहती न । आज तो मैं अपनी सारी चाहतें पूरी करूंगा । सबसे पहले तो आँखों की भूख शान्त करूँगा ,फिर स्वादेन्द्रियों की ... और तब भी मेरी कुछ हसरत बची रह गयी न तो बाजार में ले जाऊँगा तुझे ,वहाँ भी तेरा कोई न कोई चाहनेवाला  मुझको मिल ही जायेगा । अब मुझसे तुझको कौन बचा पायेगा ... 🤣🤣🤣


पोटली : खुशफ़हमी में तू जी रहा होता तब भी कोई बात होती ,परन्तु तू तो निरा ग़लतफ़हमी में ही साँसें ले रहा है । हाथ लगा कर तो देख जरा । 


आँखों में एक वीभत्स सी चमक जाग उठी और उसकी रौशनी में हाथ पोटली उठाने को लपका ही था कि पोटली ने आत्मरक्षार्थ आंतरिक बल की विद्युत तरंगे बिखेर दी और उसको छूते ही हाथ के मुँह से चीखें फूट पड़ीं ।

                                   ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

2 टिप्‍पणियां: