रविवार, 27 सितंबर 2020

#मातृत्व_एक_एहसास



मातृत्व एक ऐसा शब्द ,ऐसी अनुभूति है जो सृजन के कोमल भाव से सिंचित हो कर पूर्णता की कोमलतम भावनाओं से मन को आप्लावित कर देती है । माँ बनने का भाव पूरित होता है अपने शरीरांश के जन्म से ,परन्तु मातृत्व के अनुभव के लिये सिर्फ माँ बनना ही पर्याप्त नहीं है । इसके लिये सिर्फ तन ही नहीं अपितु मन के प्रत्येक कण को भी ,माँ बनने के अनुभव को प्रत्येक आती जाती साँस में पूरे समर्पण भाव से जीना पड़ता है । 


हम स्वयं के शरीरांश के प्रति एक अलग ही प्रकार का लाड़ ,दुलार ,मान ,गुमान ,सुख ,दुःख ,चिंता सब अनुभव करते हैं  और इसी को मातृत्व मान बैठते हैं । जबकि माँ बनना एक शारीरिक क्रिया है और मातृत्व भावनात्मक । कभी कभी हम ऐसी स्त्रियों को देखते हैं जो स्वयं तो माँ नहीं बनी होती हैं परंतु सभी के प्रति उन के मन में ममता का अथाह सागर हिलोरें मारता रहता है । सजीव - निर्जीव ,पशु ,पक्षी ,मनुष्य सबका ध्यान वो अपनी सन्तति की तरह ही रखती हैं । जबकि कई बार ऐसी माँ को भी देखते हैं जो सन्तति के प्रति भी सिर्फ अपने दायित्वों का ही वहन करती हैं । मातृत्व के कोमल भाव से बहुत दूर , उन की सन्तति और उनकी उपलब्धियाँ उनके लिये मात्र एक स्टेटस सिंबल ही होती हैं । सन्तति जब तक सफल होती रहती है वो उनकी रहती है ,वहीं उन की एक भी असफलता उन के लिये शर्मिंदगी का कारण बन स्वयं को दूर कर जाती है । 


मेरे विचार से #मातृत्व एक ऐसा भाव है जो समष्टि के साथ जुड़ कर सब के उत्थान के प्रति निरन्तर प्रयत्नशील रहता है । कभी भी असफल होने वाले पल में अकेला नहीं छोड़ सकता है । मातृत्व को किसी में भी कभी भी कोई गलती अथवा कमी नहीं दिखेगी । उसको तो उसकी ऐसी त्रुटि ही दिखेगी जिसका परिमार्जन किया जा सकता है । 


मातृत्व एक ऐसा भाव है जो किसी को भी देख कर नेह से भर कर एक कोमल स्मित उसके मन से लेकर तन पर छा जाए । कितनी भी दुष्कर परिस्थितियाँ हों ,मातृत्व का भाव एक शीतल छाया बन सदैव साथ रहता है । 

          ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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