बुधवार, 2 सितंबर 2020

लघुकथा ( संवाद ) : कनिष्ठा


सुनो 

हूँ

बहुत सोचा पर एक बात समझ ही नहीं आ रही😞

क्या 

अधिकतर लोगों को देखा है कि वो तीन उंगलियों में ,यहाँ तक कि अंगूठे में भी अंगूठी पहन लेते हैं ,परन्तु सबसे छोटी उंगली को खाली ही छोड़ देते हैं । 

हा ... हा ... सही कह रहे हो 

अरे हँसती जा रही हो ,कारण भी तो बताओ 

हा ... हा ... अरे सबसे छोटी होती है न किसीका ध्यान ही नहीं जायेगा इसीलिये ... 

मजाक मत करो सच - सच बताओ न ,तुम क्या सोच रही हो 

अच्छा ये बताओ ,हम कहीं जाते हैं तो तुम मेरी छोटी उंगली ,मतलब कनिष्ठा क्यों पकड़ लेते हो 

अरे वो तो किसी का ध्यान न जाये कि हमने एक दूजे को थाम रखा है ,बस इसीलिये ... 

अब समझे तर्जनी पकड़ाते हैं किसी को सहारे का आभास हो इसलिये ...

हद्द हो यार तुम ,मैं बात करूंगा आम तुम बोलोगी इमली ... 

सुनो तो ... कनिष्ठा प्रतीक है प्रेम का ...

प्रेम का ? 

हाँ ! हम जिसके प्रेम में होते हैं उसकी हर छोटी से छोटी बात भी महत्व रखती है ...

वो तो ठीक है परन्तु कनिष्ठा को आभूषण विहीन क्यों रखना ?

क्योंकि जब दो प्रेमी अपने होने का एहसास करते हैं तब वो कनिष्ठा पकड़ते हैं क्योंकि रस्सी का सबसे छोटा सिरा पकड़ लो तो दूरी खुद नहीं बचती । पकड़ में मजबूती नहीं होती पर विश्वास होता है । अब इस छुवन में आभूषण बैरी का क्या काम ... हा ... हा ...

तुम भी न बस तुम हो 💖💖

                ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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