गुरुवार, 14 मई 2020

पतझर ....

पतझर भी प्यारा है
इसने पत्तों को बुहारा है

पत्ते जो न तिनके बनते
घोंसले कैसे बनते होते

रूखेपन की ये भाषा है
अपनों को थामे रखा है

रूखे जो ये तिनके हैं
सब सिमटे सिमटे हैं

तिनके जुल्म सह जाते हैं
टीस दिलों में रख जाते हैं
           .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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