बुधवार, 12 अगस्त 2015

मेरी खामोश सी खामोशी .....

सोचती हूँ मौन रहूँ 
शायद मेरे शब्दों से 
कहीं अधिक बोलती है 
मेरी खामोश सी खामोशी 

ये सब 
शायद कुछ ऐसा ही है 
जैसे गुलाब की सुगंध 
फूल में न होकर 
काँटों में से बरस रही हो 

जैसे 
ये सतरंगी से रंग
इन्द्रधनुष में नही 
आसमान के मन से ही 
रच - बस के छलके हों  

जैसे 
ये नयनों की नदिया 
झरनों सी नही खिलखिलाती 
एक गुमसुम झील सी 
समेटे हैं अतल गहराइयों को …… निवेदिता 

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