आज फिर से
निखरती हवाओं ने
साँसे भरी हैं
कुछ नामालूम सी
बिखरी पत्तियों ने
यादों का द्वार
फिर से खटखटाया है
बढ़ते ठिठकते जाते
कदमों ने जैसे
एक हिचकी से ली है
दूर जाते पलों को
निहार कर संजो लिया
उन उड़ते हुए
पत्तों के रेशों पर
पाँव पड़ जाने के डर से
यादों की धड़कन ने
साँसों को रोक
रूखे -सूखे पत्तों की
किरचों को
चंद साँसे अता कर दी
और मैंने
बस पलकें मूँद कुछ साँसे
सहेज ली हैं …… निवेदिता
निखरती हवाओं ने
साँसे भरी हैं
कुछ नामालूम सी
बिखरी पत्तियों ने
यादों का द्वार
फिर से खटखटाया है
बढ़ते ठिठकते जाते
कदमों ने जैसे
एक हिचकी से ली है
दूर जाते पलों को
निहार कर संजो लिया
उन उड़ते हुए
पत्तों के रेशों पर
पाँव पड़ जाने के डर से
यादों की धड़कन ने
साँसों को रोक
रूखे -सूखे पत्तों की
किरचों को
चंद साँसे अता कर दी
और मैंने
बस पलकें मूँद कुछ साँसे
सहेज ली हैं …… निवेदिता
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-09-2015) को "राधाकृष्णन-कृष्ण का, है अद्भुत संयोग" (चर्चा अंक-2089) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सांसों पर ही जीवन टिका है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
ऐसी ही किरचों में से जीवन तलाशना है..
जवाब देंहटाएं