आज
तलाश रही हूँ
कुछ ऐसे भीने
शब्दों का कारवाँ
जिनका असर हो
सबसे ज्यादा
पहली साँसों से
सुने - गुने
शब्दों का रेला
हर सांस में
दस्तक दे
दामन थाम
अपनेपन को
जतला
आगे आ
साँसों में
बसना चाहता है
पर शायद
कहीं राह
उल्टी दिशा को
बह चली है
सबसे ज्यादा
भीने मासूम से
शब्द तो
रह ही गये
अनबोले से
लबों की खामोशी
और
आँखों के बोल
अब क्या बोलूँ .......
-निवेदिता
मौन में भी भाव तो बयां हो ही जाते हैं .....
जवाब देंहटाएंकई बार मौन ही मुखर हो जाता है...सुन्दर कविता है निवेदिता.
जवाब देंहटाएंशब्द के बहुत पहले ही संवाद प्रारम्भ हो जाता है...सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंलबों की खामोशी और आँखों के बोल.. न किसी भाषा के मोहताज - किसी शब्द के.. और शायद दुनिया की सरहदों से परे!! बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंशब्द मौन हैं.....
जवाब देंहटाएंमौन मुखर है.....आखों से बोलना काफी है...
सुन्दर रचना..
सस्नेह
अनु
बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (28-04-2013) अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो : चर्चामंच १२२८ में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका !!!
हटाएंबहुत खूब ....आभार
जवाब देंहटाएंभरे भौन में ही करत है नैनो से ही बात . अब भाव हो तो शब्दों की क्या औकात .:)
जवाब देंहटाएंकई बार ऐसा होता है.. जब शब्द साथ नहीं देते..
जवाब देंहटाएंइस शानदार रचना पर बधाई ...
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
शब्दों का कारवाँ मौन बोल गया ...
जवाब देंहटाएंआँखें सब कुछ कह देती हैं जो दिल में होता है ओर शब्द बयाँ नहीं कर पाते ...
superb.
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