शनिवार, 27 अप्रैल 2013

शब्दों का कारवाँ



आज 
तलाश रही हूँ 
कुछ ऐसे भीने  
शब्दों का कारवाँ 
जिनका असर हो 
सबसे ज्यादा 
पहली साँसों से 
सुने - गुने
शब्दों का रेला 
हर सांस में 
दस्तक दे
दामन थाम 
अपनेपन को 
जतला 
आगे आ 
साँसों में 
बसना चाहता है 
पर शायद 
कहीं राह 
उल्टी दिशा को 
बह चली है 
सबसे ज्यादा 
भीने मासूम से 
शब्द तो 
रह ही गये 
अनबोले से 
लबों की खामोशी
और  
आँखों के बोल 
अब क्या बोलूँ .......
                   -निवेदिता 

15 टिप्‍पणियां:

  1. मौन में भी भाव तो बयां हो ही जाते हैं .....

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  2. कई बार मौन ही मुखर हो जाता है...सुन्दर कविता है निवेदिता.

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  3. शब्द के बहुत पहले ही संवाद प्रारम्भ हो जाता है...सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  4. लबों की खामोशी और आँखों के बोल.. न किसी भाषा के मोहताज - किसी शब्द के.. और शायद दुनिया की सरहदों से परे!! बहुत सुन्दर!!

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  5. शब्द मौन हैं.....
    मौन मुखर है.....आखों से बोलना काफी है...

    सुन्दर रचना..
    सस्नेह
    अनु

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (28-04-2013) अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो : चर्चामंच १२२८ में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. भरे भौन में ही करत है नैनो से ही बात . अब भाव हो तो शब्दों की क्या औकात .:)

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  8. कई बार ऐसा होता है.. जब शब्द साथ नहीं देते..

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  9. इस शानदार रचना पर बधाई ...
    आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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  10. शब्दों का कारवाँ मौन बोल गया ...
    आँखें सब कुछ कह देती हैं जो दिल में होता है ओर शब्द बयाँ नहीं कर पाते ...

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