मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

संस्मरण : गलियाँ बचपन की


 आज सुबह सुबह बचपन की गलियाँ मन से चलती हुई आँखों पर पसर गयीं हैं, जैसे रातभर का सफर करती आयीं हों ... 


याद आ रही है नानी माँ की बनाई गुड़िया जिसको सहेजे पूरे घर में फुदकती रहती थी ... भाई को पढ़ाने आनेवाले चाचा ( तब घर आनेवाला कोई भी व्यक्ति चाचा / मामा / भइया / दीदी / चाची / बुआ ही होते थे सर या मैम नहीं ) जो भाई को पढ़ाते पढ़ाते आवाज देते " क से ... " और मैं जहाँ भी होती चिल्लाती "कबुत्तर ,उड़ के गया उत्तर " ... थोड़ी ही पल बीतते फिर से उनकी आवाज आती "ख से ...."  और मैं फिर दुगने जोश से "खड़ाऊँ ,पहन जाऊँ खाऊँ .... "  और इस तरह पूरी वर्णमाला बिना स्लेट चॉक को हाथ लगाये रट गयी थी ।


याद आ रही हैं कक्को बर्तन माँजते माँजते उठ कर मम्मी के पास जाती ,"दुलहिन तनी ऊन दिहल जाए ... " फिर झाड़ू की दो मजबूत दिखती सींक निकाल मुझे थमा स्वेटर बुनना सिखातीं और मैं छोटी छोटी उंगलियों से बुनने की कोशिश करती उनकी पीठ से सटी हुई । सींक टूटते ही फिर से नई सिंक मिलती ... 


अरे हाँ .... गामा काका को कहाँ भूल सकती हूँ ... हमारे गाँव के थे घर में सहायक ,दरवाजे पर कौन आया देखने वाले । जब भी वो भर परात ,जी हाँ थाली में नहीं परात में ही ,खाना खाने बैठते तब मैं भी मम्मी से जिद करती मेरा खाना भी वैसे ही भर परात परोसा जाए । मम्मी बहला कर ले जाती ,पर मेरी जिद .... और एक दिन काका ने कहा ,"चाची बहिनी के छोड़ देईं " और अपना खाना उन्होंने मेरी तरफ सरका दिया ,"पहले बहिनी खा लें तब खा लेब ..." मम्मी ने टोका कि खाना जूठा हो जाएगा ... काका का जवाब आज भी याद है ,"नाहीं चाची बहिनी क खाइल त परसाद होइ ... "


जंगली बब्बा ,हमारे यहाँ खेत में काम करते थे ,को भी मम्मी गाँव से लायीं थीं कि इतने बुजुर्ग हैं ,इनको भी आराम करना चाहिये और ये गाँव मे तो बैठेंगे नहीं पर यहाँ हम बच्चों में व्यस्त रहेंगे । कभी वो अमरूद के बीज निकाल कर छोटे छोटे टुकड़े कर खिलाते तो कभी गन्ना छील कर उसको चूसना सिखाते ,जब हम उसको तोड़ न पाते तो उसके भी छोटे टुकड़े कर देते थे । मम्मी के धमकाने की परवाह किये बिना ,उनकी पीठ पर लदी उनसे गाना सुनती थी । सीता जी का विदाई गीत अक्सर गाते और भीगी पलकों से मुझे निहारते कहते ,"बबुनी रउवां जब ससुरे जाइब त हम कइसे रहब .. "


सच बचपन की याद में मम्मी ,पापा ,भाइयों के साथ इन रिश्तों का भी बसेरा है ,जो आज भी बहुत याद आता है .... #निवी

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-10-2021) को चर्चा मंच         "फिर से मुझे तलाश है"    (चर्चा अंक-4216)     पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--श्री दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    जवाब देंहटाएं
  2. ऐसे संस्‍मरण मन को ठेठ तलछट तक भीगो देते हैं। इन्‍हें लिखने का क्रम बनाए रखिएगा। बहुत अच्‍छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. बचपन की याद ताउम्र गुदगुदाति रहती है बहुत सुंदर संस्मरण।

    जवाब देंहटाएं
  4. बचपन के दिन जितने खूबसूरत दिन कभी होतें ही नहीं!
    बचपन की यादें हमेशा लबों पर मुस्कान बिखेर जाती हैं!
    सरहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर निर्मल यादें ... ऐसे कई रिश्ते हैं जो याद आते हैं तो याद करने वाले और हम जैसे पढ़ने वालों के चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  6. बचपन की सुंदर एहसासों में डुबोती, अभिभूत करती लघुकथा ।

    जवाब देंहटाएं