मंगलवार, 5 अक्तूबर 2021

गिर के फिर मैं उठ गई !

 सब पूछते रहते

सुनो न !
तुम क्या करती हो ?
अनसुना करने की
एक नामालूम सी कोशिश
और जवाब में
सिर मेरा झुक जाता
नहीं ... कुछ नहीं करती !

एक दिन लड़खड़ा गया पाँव
दिन में दिखते चाँद तारे
बिस्तर में पड़ा शरीर
साथ ही चन्द जुमले
सुनो ! मत उठना तुम
वैसे भी क्या करना ही होगा
स्विगी करती कुछ आवाज़ें
घर मे नित बढ़ती संख्या सहायकों की !

लोग आने लगे कई
पर सुनो न घर ,अब घर सा नहीं लगता
सुनो ! अब उठ जाओ
बेशक कुछ मत करना
पर अब उस कुछ न करने के लिए
बस तुम उठ ही जाओ
गूँज रहे थे बस यही चन्द शब्द
और बस फिर कुछ नहीं हुआ
सच ... खास कुछ नहीं हुआ
सिर्फ़ और सिर्फ
गिर के फिर मैं उठ गई ! #निवी

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