मंगलवार, 24 अगस्त 2021

मेरी खामोश सी खामोशी !


सोचती हूँ मौन रहूँ 

शायद मेरे शब्दों से 

कहीं अधिक बोलती है 

मेरी खामोश सी खामोशी !


ये सब 

शायद कुछ ऐसा ही है 

जैसे गुलाब की सुगंध 

फूल में न होकर 

काँटों में से बरस रही हो !


जैसे 

ये सतरंगी से रंग

इन्द्रधनुष में नही 

आसमान के मन से ही 

रच - बस के छलके हों  !


जैसे 

ये नयनों की नदिया 

झरनों सी नही खिलखिलाती 

एक गुमसुम झील सी 

समेटे हैं अतल गहराइयों को ! #निवी

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-08-2021को चर्चा – 4,168 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. सही कहा मौन ऐसा ही है हृदयस्पर्शी सृजन।
    सादर

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