बुधवार, 12 मई 2021

लघुकथा : सपने

 


गुनगुनाते, मुस्कराते हुए दिवी चाय की ट्रे के साथ बालकनी में आ गयी । उसके चेहरे पर फैली सुरभित लुनाई को नजरों से पीता हुआ ,अवी बोल पड़ा ,"क्या बात है जानम ... आज के जैसी सुरमई सुबह तो इसके पहले कभी हुई ही नहीं ... इसका राज़ हमें भी बताओ न !"
दिवी मन ही मन अपनी खुशियों के मोदक का स्वाद लेती हुई बोली ,"जनाब ! जब अच्छी सी नींद आ जाये और उस हसीं नींद में प्यारा सा सपना आ जाये किसी प्यारे का ... हाँ जी तभी ऐसी सुबह होती है । "
"ऐसा क्या ... ",अवी भी हँस पड़ा ।
दिवी भी इठलाती हुई हँसने लगी ,"आप क्या जानो ये सपने और उनका सुरूर ... "
अवी उसके हाथों में चाय का प्याला थमाते हुए मंद स्मित के साथ बोला ,"सच कहा दिवी सपने में किसी प्रिय का आना स्वर्गिक अनुभूति देता है ... परन्तु किसी के सपनों में आना कोई बड़ी बात नहीं ।उसको वो सपना याद रह जाना और उसको हक़ीकत बनाने की जद्दोजहद के बाद ज़िन्दगी की चाय पीना उससे भी अलौकिक है ।"
दोनों की मिली हुई नज़रों में अनेकों जुगनू खिलखिलाने लगे थे ।
#निवी

1 टिप्पणी:

  1. उसको वो सपना याद रह जाना और उसको हक़ीकत बनाने की जद्दोजहद के बाद ज़िन्दगी की चाय पीना उससे भी अलौकिक है। बिल्कुल सही कहा। सुन्दर लघु-कथा।

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