ढ़लते चाँद के संग
पुरसोज़ नज़्म की मानिंद
एक ख़्वाब ने दी है
बड़ी ही नामालूम सी दस्तक
और बस इतना ही पूछा
भर लो मुझको आँखों में
सजा दूँ तेरी यादों का दामन
या तलाशूं कोई दूजा माहताब
आँखों की चिलमन बरबस
यूँ ही सी बेपरवाह छलक उठी
और नाजुक सा वो ख़्वाब
पैबस्त हो गया दिल की नमी में !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-10-2020) को "जीवन है बस पाना-खोना " (चर्चा अंक - 3847) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 06 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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