बुधवार, 29 जुलाई 2020

नवगीत : पिय मिलन को चली है रजनी !

नवगीत
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ओढ़ चुनरिया तारों वाली
पिय मिलन को चली है रजनी !

झूम रहा है अम्बर सारा
रवि पहने ओसन की मालाH
उर में सजा बसन्त है न्यारा
नज़रें बन जाती मधुशाला

किरणों के संदेसे आये
मधुमय यादें हैं सजनी
ओढ़ चुनरिया तारों वाली
प्रिय मिलन को चली है रजनी !
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गगन मगन हो हो कर बरसे
विटप झूम लहराते जायें
इस पल जियरा क्यों है तरसे
अरमां भी अब सारे गायें

चंचल कलियाँ बहती तितली
आकर्षण का केंद्र बनी
ओढ़ चुनरिया तारों वाली
पिय मिलन को चली है रजनी !

*
उमड़ घुमड़ कर नदियाँ विहसी
छू कर तट कर रही किलोलें
मदिर मदिर अधरन पर बरसी
अरमानों के पड़ रहे हिंडोले

चन्द्रकिरण सी बातें छलकी
मनुहार की थी फुहार  घनी
ओढ़ चुनरिया तारों वाली
पिय मिलन को चली है रजनी !
       .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 30 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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