गुरुवार, 30 जुलाई 2020

नवगीत : जियूँ मैं कैसे ....



***
पीर गहन हो यूँ बह निकली
शब्दों की ज्वाला हो जैसे

उर का ग़म नयनों में झलके 
अनायास झलक गया ऐसे
बाँध सकी ना बिखरी अलकें
करूँ बन्द मैं पलकें कैसे 

पर्वत का आँसू है झरना
नदी हर्ष की गाथा कैसे
पीर गहन हो यूँ बह निकली
शब्दों की ज्वाला हो जैसे

बदल बदल कांधा थे चलते
संग सदा जो लगते अपने
जली शलाका वही बढ़ाते
देखे थे जिनके ही सपने

हिय को तो पाहन कर लूँ
पर बतलाओ जियूँ मैं कैसे
पीर गहन हो बह निकली
शब्दों की ज्वाला हो जैसे

.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

1 टिप्पणी: