रविवार, 29 दिसंबर 2019

एक चुप्पी ....



जब मैं मर जाऊँ
रुक जायेंगी मेरी साँसे
पलकें भी पलक भरना
भूल ,मुंद ही जाएंगी
और दिल ....
वो तो बेचारा
अनकहे जज़्बात छुपाने में
धड़कना भूल ही जायेगा
और घर .....
घर को तो आदत सी है
मुझे चुप एकदम चुप
निस्पंद निर्जीव देखने की
बस एक ही बात मानना
मुझे शोर बिल्कुल नहीं भाता
मेरी अंतिम निद्रा न टूटे
किसी की झूठी सिसकी
या यादों की बातों से
सबसे बस यही कहना
एक चुप्पी चुपचाप चली गयी
    ...  निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-12-2019) को    "भारत की जयकार"     (चर्चा अंक-3566)  पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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