मंगलवार, 7 मई 2019

लघुकथा : जिंदगी का ब्रांड एंबेसडर



माँ : "क्या बिट्टू जब देखो मेरा बैग पैक कर के घुमाने ले चलती हो । मेरी जैसी उम्र में तो पूजन भजन करती हैं सब और तुम हो कि कभी पहाड़ तो कभी समंदर के किनारों पर ले जाती हो । अब इस बार तो हद कर दी तुमने फूलों की घाटी का प्रोग्राम बना लिया ।"

अन्विता :" माँ सबसे पहले तो ये अच्छे से समझ लो कि किसी भी काम को करने की कोई उम्र नहीं होती । जिस काम मे मन को सुकून मिलता हो उसको अपने स्वास्थ्य और परिस्थितियों के अनुसार जरूर करना चाहिए । "
"अब तक अपनी जिम्मेदारियों को निबाहती रही और अपने जीवन का एक पल भी खुद की पसंद का नहीं बिताया । अगर अब भी आप अपनी इच्छाओं को लोकाचार के पीछे दबाती रहेंगी तब आपके साथ ही ये हम बच्चों के साथ भी अन्याय ही होगा । हम अपनी अंतिम साँस तक ख़ुद को माफ नहीं कर पाएंगे ।आप इस परिवार की नींव हैं और अगर हमने इस नींव की अनदेखी की तो न चाहते हुए भी ,अनजाने में ही सही पर नींव दरक जाएगी और ये इमारत नहीं बचेगी ।मुझे पता है कि आपको बागवानी का कितना शौक था पर जब स्थानाभाव हुआ तो अपनी बगिया को हटा कर हमारे पढ़ने का कमरा बनवा दिया था आपने । फ्लैट में आपका शौक रसोई में छोटे छोटे गमलों में सिमट गया था । अब जब आपने इस योग्य बना दिया है तो कि फूलों की घाटी ले जाकर आपके मन और चेहरे पर कुछ पलों को ही सही ,पर उस बगिया की महक तो जी ही सकती हूँ । "
"और हाँ उम्र की बात आप कीजिये ही मत । अब आपको अपने हर शौक को पूरा करना है । खूब घूमिये और सखियों के साथ इतने जोर के ठहाके लगाइए कि सब कुछ जिंदगी से भर जाए । हमसब में जिंदादिली भरनेवाली आप को अब जिंदगी का ब्रांड एम्बेसडर बनना है ।"
                                       ..... निवेदिता

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