आनिकेत : "क्या हुआ अन्विता ... अब क्या सोचने लगी ... ऑपरेशन बिल्कुल ठीक हो गया और तुम घर भी आ गयी हो ... डॉक्टर ने कहा है न कि तनाव बिल्कुल नहीं लेना है .. बताओ न क्या बात है ... "
अन्विता :"बस ये सोच रही हूँ कि जिसने दिल दान किया है मुझे ,वो कैसा होगा ... उसके घरवालों ने कितना साहस और धैर्य संजोया होगा ये सब करने में । और पता अनिकेत अब मेरे दिल मे एक संकल्प भी आ रहा है कि जिसने अपनी धड़कन देकर हमारे परिवार को कुछ और खुशी भरे पल दिये हैं ,उसके परिवार के लिये हमको भी कुछ करना चाहिए । साथ ही साथ अंग दान के लिये सबको जागरूक करना चाहिये । "
.... निवेदिता
अंगदान के लिए खुद से ज्याद हमारे घरवालों को तैयार रहना चाहिए | आखिर में दान तो ज्यादातर उन्हें ही करना हैं |
जवाब देंहटाएंसही कह रही हो ... पहले की अपेक्षा अब इस दिशा में संवेदनशीलता बढ़ गयी है और स्वीकार्यता भी ... स्नेह
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/05/2019 की बुलेटिन, " मजबूत इरादों वाली अरुणा शानबाग जी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसाधुवाद...
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत सुंदर लघुकथा। इसी विषय पर मेरी पोस्ट https://www.jyotidehliwal.com/2017/04/Andhshraddha-chhodie-angdan-ya-dehdan-kijie.htmlजरूर पढ़िएगा।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-05-2019) को "चलो केदार-बदरी" (चर्चा अंक- 3341) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रेरक चिंतन।
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति
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