सिसकी धरा
अनवरत बरसा
कुंठित मन
ध्वज थामे थे
उन्नत हो मस्तक
वीरों नमन
लहू बरसा
साँसे थम गयीं थी
हम तो चले
गर्वित मन
अनगिनत मेडल
विक्षत तन
हरी वसुधा
शोणित है लाल
शर्मिंदा हम ..... निवेदिता
अनवरत बरसा
कुंठित मन
ध्वज थामे थे
उन्नत हो मस्तक
वीरों नमन
लहू बरसा
साँसे थम गयीं थी
हम तो चले
गर्वित मन
अनगिनत मेडल
विक्षत तन
हरी वसुधा
शोणित है लाल
शर्मिंदा हम ..... निवेदिता
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-02-2019) को "श्रद्धांजलि से आगे भी कुछ है करने के लिए" (चर्चा अंक-3250) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अमर शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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