मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

हाइकू


१  .... 
कलकल सी 
अविरल बहती 
धार नदी की 

२  ..... 
बंजर जमीं
इश्क घने बादल
वर्षा न थमी 

३  .... 
हमारा हास
करता परिहास
है इतिहास .... 

४  ....
चाँद निकला
खिलखिलाता हुआ
पूर्णिमा छाई 

५  .... 
मुस्कराते तारे
चन्दा चाँदनी संग
पूर्णिमा खिली
            ... निवेदिता

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-10-2018) को "सुहानी न फिर चाँदनी रात होती" (चर्चा अंक-3134) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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