अरे ! तुम आ गए
पर अब क्यों आये
अब इस सांसों के
थमने की घड़ी में
तुम्हारा आना भी
बड़ा ही बेसबब है
सच अब यूँ आना
भी न थाम सकेगा
मेरी टूटती सांसों की
थरथराती सी डोर
हाँ ! चाहा था मैंने
तुम्हे पूरी चाहत से
अपने जीवन के हर
काले उजले पल में
तुम तो थे जीने की आस
चलो ... मुक्त करो मुझे
मुझे जीने दो मेरी
बस ,ये अंतिम सांस .... निवेदिता
पर अब क्यों आये
अब इस सांसों के
थमने की घड़ी में
तुम्हारा आना भी
बड़ा ही बेसबब है
सच अब यूँ आना
भी न थाम सकेगा
मेरी टूटती सांसों की
थरथराती सी डोर
हाँ ! चाहा था मैंने
तुम्हे पूरी चाहत से
अपने जीवन के हर
काले उजले पल में
तुम तो थे जीने की आस
चलो ... मुक्त करो मुझे
मुझे जीने दो मेरी
बस ,ये अंतिम सांस .... निवेदिता
...........
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 31 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की १४०० वीं बुलेटिन, " ऑल द बेस्ट - १४००वीं ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं. मुक्त करो मुझे
जवाब देंहटाएंमुझे जीने दो मेरी
बस ,ये अंतिम सांस ...सुन्दर भाव!!
मुक्त करो मुझे
जवाब देंहटाएंमुझे जीने दो मेरी
बस ,ये अंतिम सांस ...सुन्दर भाव!!