"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-08-2016) को "भाव हरियाली का" (चर्चा अंक-2432) पर भी होगी। --हार्दिक शुभकामनाओं के साथसादर...!डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस छतरी की छाया में उसका हकदार जरूर आएगा ...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "बस काम तमाम हो गया - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
माँ की ममता की छतरी सभी को प्यारी!
सुन्दर ।
ये छतरी है मेरे दुलार की...सुन्दर ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-08-2016) को "भाव हरियाली का" (चर्चा अंक-2432) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस छतरी की छाया में उसका हकदार जरूर आएगा ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "बस काम तमाम हो गया - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमाँ की ममता की छतरी सभी को प्यारी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।
जवाब देंहटाएंये छतरी है मेरे दुलार की...सुन्दर ।
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