तुझ जैसे लाडले हैं .......
तुझ जैसे लाडले ,हैं लाखों में एक
मिलते है जिसकी , नीयत हो नेक
लड़खड़ाते डगमगाते चलना सिखाया
थाम मेरी बाँहे आगे बढ़ना सिखाया
अंधियारे मेरे मन के झरोखे सँवारे
दिल में मेरे रौशन उम्मीदें जगायी
पढ़ना सिखाया लिखना सिखाया
पढ़ मेरे मन तुमने जीना सिखाया ...... निवेदिता
क्या बात है...बहुत सुंदर...सबका ऐसा ही नेकनसीब हो .
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ... बच्चे इंसान के जीवन की शक्ति होते हैं ....
जवाब देंहटाएंमन को छूने वाली स्नेहमयी पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंकितना तोष मिलता है- माँ का मन ही अनुभव कर सकता है!
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर और भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंबच्चों पर नाज तो होता ही है मां-बाप को। सुंदर पंक्तियां
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