सोमवार, 2 जून 2014

बिखरे लम्हे ( १ )


ओस को हमने 
कभी बरसते देखा नहीं 
क्या फूल भी कभी
अपना दामन
अपने ही अश्रुओं से
भिगोते हैं !
       
रात के दामन में 
आसमान ने
टांके थे सितारे 
बरसती ओस ने 
धुंधली कर दी 
चमक सितारों की !

कोई लम्हा जैसे 
अनायास ही 
सोती आँखों से 
उनींदापन हटाने
चहलकदमी करता 
गुज़रा है यहाँ से !   

पलकें अपनी यूँ ही 
मुंदी हुई रहने दो  
बस इतनी सी तो है
उम्र ,उम्मीदों भरे
इन पलकों तले 
सांस भरते खवाबों की !
               ..... निवेदिता 



13 टिप्‍पणियां:

  1. गहरे एहसास भरे लफ्ज़ ... ख्वाब जीते भी रहते हैं खुली आँखों में कभी ...

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  2. बहुत सुन्दर...भावों को पूरी गहराई के साथ उतार दिया है अपने...|

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  3. बहुत ख़ूब!! कुछ छोटी-मोटी कसर बाकी है, लेकिन चलेगा!!

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  4. शिवम भैया ,आभार कहने की होती है न :) ..... स्नेहाशीष !

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  5. सुंदर प्रस्तुति भावपूर्ण

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  6. हर एक पंक्ति बहुत खूबसूरत है भाभी !! दो तीन बार कल पढ़ा था, आज सोचा कि आपको कहा है तो यहाँ सिर्फ कमेन्ट कर के जाऊँगा. दो बार देखिये आज भी पढ़ना पड़ा. यही खूबसूरती होती है आपकी कविताओं की

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  7. सुन्दर भावों की कोमल सी कविता । खूबसूरत ।

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