ओस को हमने
कभी बरसते देखा नहीं
क्या फूल भी कभी
अपना दामन
अपने ही अश्रुओं से
भिगोते हैं !
अपना दामन
अपने ही अश्रुओं से
भिगोते हैं !
रात के दामन में
आसमान ने
टांके थे सितारे
टांके थे सितारे
बरसती ओस ने
धुंधली कर दी
चमक सितारों की !
कोई लम्हा जैसे
अनायास ही
सोती आँखों से
उनींदापन हटाने
चहलकदमी करता
गुज़रा है यहाँ से !
पलकें अपनी यूँ ही
मुंदी हुई रहने दो
बस इतनी सी तो है
उम्र ,उम्मीदों भरे
कोई लम्हा जैसे
अनायास ही
सोती आँखों से
उनींदापन हटाने
चहलकदमी करता
गुज़रा है यहाँ से !
पलकें अपनी यूँ ही
मुंदी हुई रहने दो
बस इतनी सी तो है
उम्र ,उम्मीदों भरे
इन पलकों तले
सांस भरते खवाबों की !
..... निवेदिता
..... निवेदिता
गहरे एहसास भरे लफ्ज़ ... ख्वाब जीते भी रहते हैं खुली आँखों में कभी ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन चाहे कहीं भी तुम रहो; तुम को न भूल पाएंगे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशिवम भैया ,आभार कहने की होती है न :) ..... स्नेहाशीष !
हटाएंबहुत सुन्दर...भावों को पूरी गहराई के साथ उतार दिया है अपने...|
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!! कुछ छोटी-मोटी कसर बाकी है, लेकिन चलेगा!!
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-06-2014) को "बैल बन गया मैं...." (चर्चा मंच 1632) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार आपका !
हटाएंसुंदर भाव।
जवाब देंहटाएंमनभावन !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंहर एक पंक्ति बहुत खूबसूरत है भाभी !! दो तीन बार कल पढ़ा था, आज सोचा कि आपको कहा है तो यहाँ सिर्फ कमेन्ट कर के जाऊँगा. दो बार देखिये आज भी पढ़ना पड़ा. यही खूबसूरती होती है आपकी कविताओं की
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों की कोमल सी कविता । खूबसूरत ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह !!! क्या बात है ...:)
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