शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

ये कैसा समर्थन ..........



" हम समर्थन करते हैं " ये कहना और मानव श्रृंखला या कोई मंच बनाना  जितना आसान है ,उससे कहीं बहुत अधिक कठिन है उस को अपने आचरण में उतार पाना | सहमत होना तो एक तरह से विचारों को स्वीकार करना है | इसके बिलकुल विपरीत है समर्थन | अगर हम वास्तविक अर्थों में किसी भी विचारधारा का समर्थन करते हैं ,तो हमें उसको अपने जीवन में उतारना भी चाहिए | ये तो खुद को ही धोखा देना हुआ कि हम समर्थन तो जरूर आपका करते हैं ,पर अपना जीवन एकदम या अंशत: विपरीत दिशा में जीना चाहते हैं | इसका कारण भी सिर्फ इतना सा है कि हम अपनी सुविधाओं से समझौता नहीं कर सकते हैं | 

जब भी हम ऐसी परिस्थिति में होते हैं ,तब अनेक राहें हमारा ध्यानाकर्षण करना चाहती हैं | ऐसे में हम अपनी जीवन तुला के दोनों पलड़ों - परिवार अथवा समाज ........ किसको चुनें जैसी दुविधा में पाते हैं | अगर हम समाज की सोचते हैं तो परिवार की अपेक्षाएं अधूरी रह जाती हैं .............. और अगर इसके विपरीत अपने परिवार को अपनी प्राथमिकता बनाते हैं ,तब सामाजिक हालात आज जैसे हो जाते हैं जिसमें एक वृद्ध व्यक्ति सियासत का खिलौना बन जाता है ! 

इन परिस्थितियों में भी हम कल्पना करते हैं कि कोई जादुई जिन्न प्रगट हो जाएगा और क्षण भर में इतनी विषम समस्या का समाधान कर देगा | सबकी जवाबदेही तय करते हुए हम सबसे बड़ी बात भूल जाते हैं कि हम खुद को कितना और किसके प्रति जवाबदेह मानते हैं ! जब हम समूह में गांधी जी ,जयप्रकाश नारायण जी और अब अन्ना जी की नीतियों की समीक्षा करतें है ,उस समय सब सिर्फ फलसफा  बखानते हैं | जब व्यवहारिक रूप में उन बातों को अपनाने का समय आता है ,तब पल भर भी नहीं लगाते है उन आदर्शों को छोड़ने में | 

अन्ना जी का मैं भी पूर्णत: समर्थन करती हूँ ... बस इसके साथ एक आश्वासन खुद को भी देना चाहती हूँ कि भ्रष्टाचार का विरोध सिर्फ इस मोर्चे पर ही न करके दैनिक जीवन में भी करूं | अगर हम नारे लगाते हैं तो एक बार खुद से भी पूछें कि क्या हमारा आचरण भ्रष्ट तो नहीं है | जिस भी संस्था में हैं और जैसे भी पद पर हैं अगर पूरी ईमानदारी से अपने दायित्वों का पालन करें | अगर नीतियों के क्रियान्वयन में कहीं लचीले भी होते हैं ,तो वो किसी व्यक्ति विशेष के हित में न होकर समाज के हित में हो | जितने भी 'कर' हमें देने हो, सब दें | अगर हर व्यक्ति इतना सा अपने व्यक्तिगत स्तर पर कर ले तो शायद किसी भी अराजकता से समाज का बचाव हो सकता है | 

अगर हम चाहते हैं कि सडकें समतल हों तो हमारा भी ये दायित्व है कि सडकों को किसी प्रकार क्षतिग्रस्त न करें |घर हमारा बनता है पर सरिया कटवाने का काम सड़क पर ही करवाते हैं | सड़क खराब  होने पर अपने घर के सामने खड़े हो कर सम्बन्धित विभाग का तर्पण कर देतें हैं | अगर घरों के सामने नाली नहीं बनवायेंगे और घर के सामने की जगह ऊंची करवा देंगे तो बरसात का पानी जमा होगा ही ,जिसको साफ़ कर पाना दुनिया की किसी भी नगरपालिका के लिए सम्भव ही नहीं है | घर में बिजली का इस्तेमाल बेदर्दी से करेंगे और बिलआने पर विभाग की ऐसी तैसी करने को तैयार हैं | अरे! विभाग वाले तो आपके घर में बिजली का इस्तेमाल करते नहीं हैं | अगर स्विच बंद करना याद रखें, तो बिल भी कम आयेगा और किसी दूसरे को कटौती का सामना भी नहीं करना पड़ेगा | बिल जमा करने के समय, बिना धनराशि  कम करवाए, जमा करना कितने लोग चाहते हैं ! अगर समय पर बकाया भुगतान हो जाए तो विभाग भी व्यस्थित रूप से कार्य कर पायेगा | ये तो कुछ उदाहरण हैं ,हम अगर खुद के प्रति जवाबदेही तय कर लें तब , किसी भी क़ानून की जरूरत नहीं पड़ेगी और न ही किसी को इस त्रासद स्थिति का सामना करना पड़ेगा | आज हम अन्ना जी को समर्थन देने के नाम पर ,उनको कष्ट उठाते देख रहे हैं | ये कैसा समर्थन है .......... 

16 टिप्‍पणियां:

  1. व्यवस्था परिपर्तन की लड़ाई में बड़ी-बड़ी क़ुर्बानियां देनी पड़ती हैं।

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  2. वर्तमान परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए आपने सटीक लिखा है...... सचमुच हम लोग अपने को बिना सुधारे ही दुनिया सुधरने की कामना करते हैं. यह कैसे संभव है. ........ आदरणीय अन्ना जी को सारा देश समर्थन दे रहा है. परन्तु कुछ ऐसे संघटन भी आज मंच हतियाने की होड़ में हैं जो गले गले तक..... ऐसा लग रहा जैसे सारा देश अब किसी प्रकार के अनैतिक काम न करने की सौगंध खा चुका हो......... हमारे मोहल्ले में भी अन्ना जी के समर्थन में एक रैली निकली, जिसमे वे लोग ही अधिक थे जिन्होंने भोले भाले किसानों को बहला फुसला कर सस्ते में उनकी जमीने खरीदी और ऊंचे दामो में बेच दी है, ऱोज नया ग्राहक फसाते हैं और शाम को किसी रेस्तरां में बैठकर दारू मुर्गा उड़ाते हैं............ ???

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  3. सार्थक लेख ... स्वयं में जब तक बदलाव नहीं लायेंगे तब तक समर्थन का कोई महत्त्व नहीं ...

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  4. भावनाओ से परे तार्किक विश्लेषण.
    सुखद संयोग कि ऐसा ही कुछ मैंने भी अपने ब्लॉग पर लिखा है. अनुरोध है आप अवश्य पढ़े व अपनी राय व्यक्त करे.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  5. सहमत होना तो एक तरह से विचारों को स्वीकार करना है | इसके बिलकुल विपरीत है समर्थन | अगर हम वास्तविक अर्थों में किसी भी विचारधारा का समर्थन करते हैं ,तो हमें उसको अपने जीवन में उतारना भी चाहिए | ये तो खुद को ही धोखा देना हुआ कि हम समर्थन तो जरूर आपका करते हैं ,पर अपना जीवन एकदम या अंशत: विपरीत दिशा में जीना चाहते हैं | इसका कारण भी सिर्फ इतना सा है कि हम अपनी सुविधाओं से समझौता नहीं कर सकते हैं | ....

    बेहद सटीक अवलोकन निवेदिता जी । सच्चा समर्थन तो विचारों को अपने चरित्र में उतारना होगा।

    .

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  6. दोस्तों आप सब के आने का आभार .......
    @स्वतन्त्र नागरिक जी ,शायद आपने ध्यान से पढ़ा नहीं ..... ये भावनाओं से परे तार्किक विश्लेषण नेहीं है ,अपितु ये सब के लिये आह्वान है कि हम खुद को भी सुधारें ..... खुद अपने को सुधरवाने के लिये किसी दूसरे के जीवन को दाँव पर न लगायें .... मै अन्ना जी की बहुत इज़्ज़त करती हूँ कि उन्होंने सोये हुए आमजन में एक आत्मचेतना जाग्रत की है और इसलिये ही कष्ट भी हो रहा है ..... बहरहाल ये मेरी सोच है ... आपके आने का आभार !
    @मनोज जी : आप बिलकुल सही हैं ... व्यवस्था के परिवर्तन में कुर्बानियाँ देनी ही पड़ती हैं ,पर इस नेक कार्य में हमारी भागीदारी नारे लगाने से आगे जा कर अपने हिस्से के भ्रष्टाचार को अपने स्तर पर खत्म करने की भी है ......आपके आने का आभार !

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  7. अन्‍ना हजारे ने कहा कि देश में जनतंत्र की हत्‍या की जा रही है और भ्रष्‍ट सरकार की बलि ली जाएगी। यह गांधीवादी अहिंसक सत्‍याग्रह है या खून के बदले खून?

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  8. निवेदिता जी बिलकुल सटीक लिखा आपने . समर्थन में उमड़ रही भीड़ में जज्बा है व्यवस्था परिवर्तन का. मात्र शरीर के ऊपरी घाव को शल्य क्रिया द्वारा हटा देने से घाव का कारक मौजूद तो रहता ही है उसे तो समूल नस्त करना ही पड़ता है. रामलीला मैदान से और घरों में बैठे अन्ना को समर्थन देने वालों को स्वयं को भ्रटाचार मुक्ति हेतु भी शपथ लेनी होगी तभी सही अर्थों में ये आन्दोलन सफल होगा.

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  9. सार्थक ...प्रस्तुति जब तक खुद के अंदर बदलवा नहीं आएगा तब तक कुछ नहीं बदलेगे .

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  10. स्वयं को बदलने से सब बदलने लगता है।

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  11. आर्म चेयर समर्थक तो बहुत मिलते है, जो मैदान में उतरते हैं, वही सच्चे समर्थक कहे जाएंगे॥

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  12. सार्थक लेख है आपका ... शामिल जरूर होना है इस मुहीम में और संभालना भी है सम्पति को नुक्सान न हो ...

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  13. very effective read..
    भ्रष्टाचार का विरोध सिर्फ इस मोर्चे पर ही न करके दैनिक जीवन में भी करूं
    i wish every thinks like this :)

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