शनिवार, 9 जुलाई 2011

छोटी - बड़ी बूंदी सरीखे .......

छोटी - बड़ी रंग - बिरंगी बूंदी 
सरीखे ,हम सब भाई - बहन ,
माँ - पापा के प्यार - दुलार भरे ,
अनुशासन की पावन चाशनी में ,
बँधे - गुँथे मोतीचूर लड्डू जैसे ! 
शुभ शगुन बढ़ाते साथ हो लिए ,
हमारे हमराही जीवनसाथी बन !
इस मिठास पर चांदी के वर्क सा ,
सजते हमारे चंचल बाल - गोपाल !
दूर आसमान के चंदोवे से ताक - झाँक,
पुलकित हुए होंगे माँ , पापा और भाभी-माँ !!!
                                                   -निवेदिता   

15 टिप्‍पणियां:

  1. चासनी में डूबी हुयी एक मीठी रसीली प्रस्तुति. आभार !

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  2. बहुत मीठा लगा यह रिश्तों का लड्डू :):)

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  3. बहुत ही सुंदर है सभी बुँदे....

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  4. पूरी जीवन रेखा सुंदर बन पड़ी है

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  5. आपकी कविता पढकर हम भी पुलकित हो गये। बधाई।

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  6. सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार

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  7. चासनी की मकह आ रशी है इस रचना में ...

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  8. वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने बहुत खूबसूरत.......

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  9. अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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