अंतरमन शुचि सुंदर हो मॉं
राग विकार से रिक्त हो जाऊँ!
रच जाऊँ श्रध्दा से माँ मैं,
साँस साँस पूजन हो जाये
शब्द करे यूँ नर्तन मन में
मन वृंदावन हो मुस्काए।
मन वीणा के तारों से माँ
महिमा तेरी पावन गाऊं।
अंतरमन शुचि सुंदर हो मॉं
राग विकार से रिक्त हो जाऊँ!
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मन ही मन की न समझे
मैं मनका मनका फेर रही हूँ,
घट घट रमते बनमाली सा
नन्दन वन को हेर रही हूँ।
शीश मेरे माँ हाथ तो रख दो
झूम झूम पग से लग जाऊँ।
अंतरमन शुचि सुंदर हो मॉं
राग विकार से रिक्त हो जाऊँ!
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निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ
मां शारदे को नमन वंदन करते हुए 🙏
जवाब देंहटाएंदीदी को प्रणाम 🙏
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 02 फरवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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