रविवार, 2 फ़रवरी 2025

शारदे वन्दना


अंतरमन शुचि सुंदर हो मॉं

राग विकार से रिक्त हो जाऊँ!


रच जाऊँ श्रध्दा से माँ मैं,

साँस साँस पूजन हो जाये

शब्द करे यूँ नर्तन मन में

मन वृंदावन हो मुस्काए।


मन वीणा के तारों से माँ 

महिमा तेरी पावन गाऊं।

अंतरमन शुचि सुंदर हो मॉं

राग विकार से रिक्त हो जाऊँ!

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मन ही मन की न समझे

मैं मनका मनका फेर रही हूँ,

घट घट रमते बनमाली सा

नन्दन वन को हेर रही हूँ।

शीश मेरे माँ हाथ तो रख दो 

झूम झूम पग से लग जाऊँ।

अंतरमन शुचि सुंदर हो मॉं

राग विकार से रिक्त हो जाऊँ!

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निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

लखनऊ