शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

लघुकथा : कटोरा संवेदनाओं का

 लघुकथा : कटोरा संवेदनाओं का


पता चला कि स्वघोषित प्रतिष्ठित लेखिका आई. सी. यू. में भर्ती हैं और उनकी मिजाजपुर्सी के लिए लोग सिर्फ़ जा ही नहीं रहे अपितु आई. सी. यू. के अंदर जा कर मिल भी रहे हैं और जो नहीं आ पाए हैं उनको लेखिका की इच्छानुसार वीडियो कॉल कर के बताया और दिखाया जा रहा है।

ऐसी ही वीडियो कॉल से मुझको भी बताया गया तब आज मैं भी पहुँची मिजाजपुर्सी के लिए। गेट पर ही शशिकांत चंद्र जी मिल गए, जो उन लेखिका के बताये अनुसार उनके घनघोर वाले आशिक़ हैं और उनके पीछे अपना परिवार तो क्या प्राण भी त्याग सकते हैं। दुआ सलाम के बाद मैंने पूछ ही लिया, "कब आये बंधु ... मिल चुके कि नहीं अभी?"

"नहीं मिला तो नहीं हूँ अभी तक क्योंकि वहाँ उनके पति और बच्चे हैं जिनके सामने मिलने की मनाही है मुझे। पर हाँ! संवेदनाओं का कटोरा पहुँचवा दिया है यह कहलाते हुए कि तीन दिनों से इसी चाय की टपरी पर बैठा हूँ। उनके डिस्चार्ज होने के बाद ही घर जाऊँगा", वह एक पल को ठिठका और मैं जैसे आसमान से धरातल पर गिर गयी।

मुझे यूँ हतप्रभ देख वह तिरछी मुस्कान बिखेरता बोला,"आप उनको स्वयं सा मत समझिये। आप को असली संवेदना समझ आती है और उनको तो बताने में मसालेदार लगने वाली संवेदना भाती है। कल परसों की तो व्यवस्था हो गयी थी, बस आज का यह कटोरा आप पहुँचा देना ", और वह लापरवाह सा वापस जाने को स्कूटर स्टार्ट करने लगा।
निवेदिता 'निवी'
लखनऊ