सोमवार, 7 दिसंबर 2020

लघुकथा : दूसरा इश्क़

लघुकथा : दूसरा इश्क़


दिवी अपना नाम सुनते ही दृढ़ क़दमों से मंच की तरफ बढ़ ही चली थी ,कि सामने से आता अवी उसको देख कर चौंक ही गया था । अलग होने के बाद जैसे उसकी ज़िन्दगी उसी लम्हे में अटकी रह गयी थी और दिवी कितना आगे बढ़ गयी है ... आत्मविश्वास और ज़िंदादिली  का बेमिसाल शाहकार हो जैसे । दिल मे ख़लिश सी हुई और नज़रें मानो उसके इस रूप के कारण को उसके स्थान के आजू - बाजू में भौतिक रूप को तलाशने लगीं । किसी नतीज़े पर वह पहुँच पाता कि मंच से दिवी की आवाज़ आयी । वह अपने नये उपन्यास 'दूसरा इश्क़' के बारे में बता रही थी ।


"यह सवाल मेरे ज़हन में भी सरगोशियां करता रहता है और मुझसे मुख़ातिब लोगों के भी ,कि दूसरा इश्क़ सम्भव कैसे हो सकता है ... इश्क़ तो एक बार ही होता है और वह पहला जुड़ाव इतना असरदार रहता है कि किसी और रंग को चढ़ने ही नहीं देता ... उसके बाद के जुड़ाव जिसको सब दूसरा तीसरा इश्क़ कहते हैं वह तो सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़िम्मेदारियों और सम्बन्धों का निर्वहन ही होता है   ,शेष कुछ नहीं ," हल्की सी हँसी ने उसके चेहरे को एक नई चमक से भर दिया ,"परन्तु सच कहिये तो हम कई बार इश्क़ करते हैं ,क्योंकि सिर्फ़ आशिक - माशूक का इश्क़ ही असली इश्क़ नहीं होता । इश्क़ तो तन्तु है एक जुड़ाव का ... हर वो जुड़ाव जो किसी से बाँधता चले इश्क़ है ,चाहे वो काम से इश्क़ हो या ऊपरवाले से ,प्रकृति से हो या शौक से । "


नई ऊर्जा से साँस भरती वह कहती ही चली गयी ,"यदि अपना अनुभव बताऊँ तो कहूँगी कि हाँ ! मुझे भी दूसरा इश्क़ हुआ है ... ऐसा इश्क़ जिसने मुझको ज़िन्दगी से जोड़े रखा ... और अब मैं इश्क़ करती हूँ खुद अपनेआप से ... मुझको मुझसे ज्यादा कोई समझ ही नहीं सकता और न ही ख़ुद को मैं कभी भी दग़ा दूंगी । मेरे इस इश्क़ ने ही तो इन क़दमों में यायावरी भर नई पहचान दी है ... पहचान खुद से खुद की !"

           ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-12-2020) को "पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने"  (चर्चा अंक- 3910)   पर भी होगी। 
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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  2. ,"परन्तु सच कहिये तो हम कई बार इश्क़ करते हैं ,क्योंकि सिर्फ़ आशिक - माशूक का इश्क़ ही असली इश्क़ नहीं होता । इश्क़ तो तन्तु है एक जुड़ाव का ... हर वो जुड़ाव जो किसी से बाँधता चले इश्क़ है ,चाहे वो काम से इश्क़ हो या ऊपरवाले से ,प्रकृति से हो या शौक से । " सुन्दर सृजन।

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