लघुकथा : पुनर्विवाह
"सुनो ... "
"हूँ ... "
मनुहार करती आवाज ,"इधर देखो न ... "
हँसी दबाती सी आवाज ,"तुमने तो सुनने को कहा था ... "
"जब इतना समझती हो तो हाँ क्यों नहीं बोलती ... "
"मैं क्यों हाँ बोलूँ ,तुमको पूछना तो पड़ेगा ही ... "
नजरें मिल कर खिलखिला पड़ीं ,"चलो न ... अब पुनर्विवाह कर ही लेते हैं !"
"पुनर्विवाह ... "
"हाँ ! हमारे मन और आत्मा का विवाह तो कब का हो चुका है ... अब ये समाज के साक्ष्य और मन्त्रों वाली भी कर ही लेते हैं ... "
वहीं कहीं दूर आसमान में खिला इंद्रधनुष नजरों में सज गया ...
.... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
"सुनो ... "
"हूँ ... "
मनुहार करती आवाज ,"इधर देखो न ... "
हँसी दबाती सी आवाज ,"तुमने तो सुनने को कहा था ... "
"जब इतना समझती हो तो हाँ क्यों नहीं बोलती ... "
"मैं क्यों हाँ बोलूँ ,तुमको पूछना तो पड़ेगा ही ... "
नजरें मिल कर खिलखिला पड़ीं ,"चलो न ... अब पुनर्विवाह कर ही लेते हैं !"
"पुनर्विवाह ... "
"हाँ ! हमारे मन और आत्मा का विवाह तो कब का हो चुका है ... अब ये समाज के साक्ष्य और मन्त्रों वाली भी कर ही लेते हैं ... "
वहीं कहीं दूर आसमान में खिला इंद्रधनुष नजरों में सज गया ...
.... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-11-2019) को "मीठा करेला" (चर्चा अंक 3532) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'