मंगलवार, 26 नवंबर 2019

लघुकथा : पुनर्विवाह

लघुकथा : पुनर्विवाह

"सुनो ... "
"हूँ ... "
मनुहार करती आवाज ,"इधर देखो न ... "
हँसी दबाती सी आवाज ,"तुमने तो सुनने को कहा था ... "
"जब इतना समझती हो तो हाँ क्यों नहीं बोलती ... "
"मैं क्यों हाँ बोलूँ ,तुमको पूछना तो पड़ेगा ही ... "
नजरें मिल कर खिलखिला पड़ीं ,"चलो न ... अब पुनर्विवाह कर ही लेते हैं !"
"पुनर्विवाह ... "
"हाँ ! हमारे मन और आत्मा का विवाह तो कब का हो चुका है ... अब ये समाज के साक्ष्य और मन्त्रों वाली भी कर ही लेते हैं ... "
वहीं कहीं दूर आसमान में खिला इंद्रधनुष नजरों में सज  गया ...
       .... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-11-2019) को    "मीठा करेला"  (चर्चा अंक 3532)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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