लघुकथा : धैर्य की दिशा
स्टेज पर अवि पुरस्कार लेता हुआ और दर्शक दीर्घा में अंकू के साथ मैं । तालियों की गड़गड़ाहट में खुशियों में झूमता मन कितने वर्ष पीछे चला गया ....
माँ देखो न ये अवि बात ही नहीं मान रहा ... सारी दीवाल पर पेंसिल से लाइन खींच रहा था मैंने पेंसिल ले ली तो अब देखो न चम्मच उठा लाया .... अंकु परेशान सी मेरे सामने खड़ी हो गयी ।
मैंने कहा कि वो भाई को ले आये । उनके आने पर मैंने अवि को समझाया कि दीवाल पर नहीं लिखते और उसके हाथों में ड्रॉइंग की कॉपी और पेंसिल थमा दी थी कि उस पर जो भी मन हो बनाये ।
आज की इन तालियों की गड़गड़ाहट में मेरे उस दिन का धैर्य और अवि को सही दिशा मिलने का उपक्रम झलक रहा है । .... निवेदिता
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-12-2018) को "सुख का सूरज नहीं गगन में" (चर्चा अंक-3185) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर और भावपूर्ण लघुकथा
जवाब देंहटाएंVery Nice.....
जवाब देंहटाएंबहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत...