हाँ ! सच है ये
खिड़कियाँ होती है
नरम पुरवाई सी नाजुक
बहुत कुछ देखती हैं
और सुनती भी हैं
बेजुबान सी ....
पर ये भी तो सच है
खिड़कियाँ सजती हैं
सपनीले से घरों में
और दरवाजे ....
थाम लेते हैं रास्ता
उन तंद्रिल हवाओं का
जो जीवन्त कर देती हैं
बेबस सी खिड़कियों को .... निवेदिता
कल वाइरल हुए उस रोती हुई बच्ची के वीडियो पर सलिल वर्मा जी की बेबाक राय ... उन्हीं के अंदाज़ में ... आज की ब्लॉग बुलेटिन में |
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गुरुदेव ऊप्स गुरुदानव - ब्लॉग बुलेटिन विशेष “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभास दे देती हैं खिड़कियाँ सारे ही ,रास्ता देना उनके बस में कहाँ !
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... गहरा एहसास देती हुयी रचना ...
जवाब देंहटाएं