माँ कदमों में ठहराव है देती
पिता मन को नई उड़ान देते
माँ पथरीली राह में दूब बनती
पिता से होकर धूप है थमती
पिता से होकर धूप है थमती
माँ पहली आहट से हैं जानती
पिता की धड़कन आहट बनती
पिता की धड़कन आहट बनती
ये ठहराव ,ये उड़ान क्यों अटकती
हर आहट क्यों धड़कन सहमाती
हर आहट क्यों धड़कन सहमाती
अब न तो दूब है ,न ही धूप का साया
तलवों तले छाले हैं ,सर पर झुलसन
तलवों तले छाले हैं ,सर पर झुलसन
न ही कोई ओर है न ही कोई छोर
कितनी लम्बी लगती सांसों की डोर ...... निवेदिता
कितनी लम्बी लगती सांसों की डोर ...... निवेदिता
बहुत ख़ूब मेरी प्यारी छोटी बहन!! कभी ऐसा ही कुछ भाई-बहन के लिये भी लिखो! सौभाग्यवती भव!!
जवाब देंहटाएंजीवन की धुरी होते हैं माता पिता ... उनका होना जीवन को नए आयाम देता है ... बहुत संवेदनशील रचना ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंहमारे अंतर्मन को छू गयी यह मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएं