मेरे कदमों की
अबोली सी धड़कन
साँस - साँस
अटक जाती हैं
सामने दिखती मंज़िल
कदमों को
निहारती पुकारती हैं
पर …
अगर
ये एक साँस भर भी
मंज़िल की तरफ
बहक कर लुब्ध हो जाएंगे
साथ चलते
हमक़दम के लडख़ड़ाते कदम
कहीं अटक कर
भटक न जाएँ
चलो …
मंज़िल मिले न मिले
चार कदमों का
इस सफर में
दो कदम बन साथ चलना
मुबारक हो हमकदम के
अटकते कदमों का साथ … निवेदिता
अबोली सी धड़कन
साँस - साँस
अटक जाती हैं
सामने दिखती मंज़िल
कदमों को
निहारती पुकारती हैं
पर …
अगर
ये एक साँस भर भी
मंज़िल की तरफ
बहक कर लुब्ध हो जाएंगे
साथ चलते
हमक़दम के लडख़ड़ाते कदम
कहीं अटक कर
भटक न जाएँ
चलो …
मंज़िल मिले न मिले
चार कदमों का
इस सफर में
दो कदम बन साथ चलना
मुबारक हो हमकदम के
अटकते कदमों का साथ … निवेदिता
Bahut Sunder
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दो कदम तुम चलो, दो कदम हम..
जवाब देंहटाएंमंजिल फिर एक दूसरे के बनेंगे तुम और हम :)
इस बार आपसे सुन कर रहेंगे कविता कोई! इतनी सुन्दर कवितायें लिखती हैं आप !
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