शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

सीप सा होना चाहती हूँ ......




सीप यूँ तो अक्सर ही  
मोती सहेजे रखती है 
अपने दामन में बरबस 
उसकी चमक संजोये 
अनजानी उम्मीदें जगा 
इंद्रधनुषी रंग सजा 
संजीवन जीवंत हो जाती है 
पर  …
कभी - कभी 
जानी पहचानी प्यास जगा 
सीप नि:शब्द रह जाती है 
मोती तलाशते स्पर्श 
रूखे सन्नाटे की 
रिक्ति विरक्ति में 
दामन रीता ही पाते हैं 
और हाँ !
सीप और मोती 
अलग रहने पर भी 
दूर कहाँ हो पाते हैं 
सीप की गोद सहेजे रहती है 
मोती की चमक 
मोती भी तो सराहता है 
सीप की दुलराती छाँव 
बस यूँ ही 
बरसती बूँदे देख - देख 
मन बावरा बहक गया 
सीप को खोजते - खोजते 
धड़कन में मोती सा दमक गया  …… निवेदिता 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सीप सा होने पर ही तो मोती मिलेंगें । गहरी , बहुत गहरी बात ............

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (19-01-2014) को "सत्य कहना-सत्य मानना" (चर्चा मंच-1496) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. गहन भावार्थ समेटे एक सुन्दर कविता |

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  4. सीप और मोती अलग कहाँ हो पाते हैं .....बहुत गहन और सुंदर अभिव्यक्ति निवेदिता जी .

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  5. सींप और मोती का रिश्ता ....बहुत सुंदर गहन भाव अभिव्यक्ति दी...

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  6. स्वाति की एक बूँद की आस, सीप का सान्निध्य उसे मोती बना देता है... एक बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!!

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  7. सीप न हो तो मोती कहाँ ... गहरा रिश्ता है दोनों में ...

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  8. सींप और मोती का रिश्ता ...... सुंदर यथार्थ पूर्ण उत्कृष्ट रचना ....बहुत अच्‍छा लि‍खा है दी

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