शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

आशीष बन बरस जाओ ......

खट खटाक खड़क 
सन्नाटे में गूंजती 
कदमों की आवाजें 
सिटकनी लगाते 
अटकती झिझकती 
श्वांसों की राह  
रोकते अनदेखे 
नक्षत्र ........
मुंदी पलकें 
उलझी अलकें 
रक्त कणिका बन 
रुक्ष तन्तुओं में 
जीवन बन 
बरस जाओ 
हे प्रभु ! 
दुआओं में 
जुड़े हाथों में 
आशीष बन 
बरस जाओ ......
         - निवेदिता 

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपने ठीक कहा वास्तव मेँ इन दुआओँ की जरूरत है । आपकी दुआएँ स्वीकार हो यही शुभकामना है । सस्नेह

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  2. उत्तर
    1. हाँ दी ,मेरी जिठानी की तबियत ठीक नहीं है ,वो वेंटीलेटर पर हैं ये दुआ उन के लिए है ......

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  3. अन्तर कहता है तो सच भी हो ही जायेगा।

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  4. तथास्तु ! ईश्वर सब कुशल करे !

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  5. आपकी प्रार्थनाओं में हम भी साथ हैं.....
    हिम्मत बनाए रखिए...

    ~सादर!!!

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