शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

धूमिल अवसाद न समझ .......



छल -छल करती सरिता 
कह लो 
या निर्झर बहते जाते नीर 
नयन से 
तरल मन अवसाद सा बहा 
अंतर्मन से 
कूल दुकूल बन किसी कोर 
अटक रहे 
पलकें रूखी रेत संजोये तीखे  
कंटक सी चुभी 
ओस का दामन गह संध्या 
गुनगुनायी थी 
नमित थकित पत्र तरु का 
भाल बना 
धूमिल अवसाद न समझ 
इस पल को 
आने वाली चन्द्रकिरण का 
हिंडोला बन 
शुक्र तारे की खनक झनक सा 
उजास भरा  
पुलकित प्रमुदित मन साथी 
मधुमास बना ...
                    -निवेदिता 

14 टिप्‍पणियां:

  1. kya baat hai ,,lagta hai tum ko aur Ashish ko padh kar apni hindi to zaroor sudhar jaegi ,,bahut sundar !!

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  2. कविता के माध्यम से प्रेषित भाव ह्रदयगह्य है . अनुपम और सार्थक शब्दों से सजी प्रमुदित करती रचना . और इस्मत दी , निवेदिता जी से हमहू सीखेंगे आपकी तरह :)

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  3. बहुत सुंदर कविता आशीष राय की की बात से भी सहमत हूँ :)

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  4. अति सुंदर भाव एवं अभिव्यक्ति ...
    शुभकामनायें।

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  5. मन के कोमल भाव की अभिव्यक्ति ... अविरल बहते रहें ये भाव ...

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  6. अवसाद से प्रेरणा की ओर ले जाते वैदिक ऋचाओं से भाव

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