सोमवार, 19 नवंबर 2012

जाय बसो परदेस पिया .......

विशिष्ट पर्वों पर होने वाली सफाई कई भूली - बिसरी चीजें सामने ला देती है । इसमें कभी - कभी ऐसे सामान भी मिल जातें हैं जिनके लिए दूसरों को कठघरे में खड़ा कर दिया गया था । इस बार की विशद सफाई अभियान का परिणाम  बहुत  सुखद रहा और थोड़ा सा यादों के अतल गर्त में ले जाने वाला भी ..... 

इस बार सफाई करते हुए ,हम प्रस्तर युग में पहुँच गये ..... बहुत ढेर सारी चीज़ें मिल गयी जिन्हें हमने कितने जतन से सम्हाल रखा था ! लग रहा था हमने  अपनी  जीवन की यात्रा रिवर्स गियर में शुरू कर दी हो । कहीं  बच्चों की  बनायी हुई ,या कहूँ उनकी कारस्तानियाँ अपनी खिलखिलाती स्मृतियाँ लिए कभी स्मित तो कभी अट्टहास देती गईं  :)

 थोड़ा और पीछे की जीवन यात्रा के सामान भी मिले । पर जिसने  एकदम से गति अवरुद्ध कर दी तो वो थे एकदम प्रारम्भिक अवस्था में लिखे पत्र , मानी हुई बात है पतिदेव के ही अन्य का बताने का खतरा तो अब भी नहीं ले सकती  :)  

जैसे - जैसे उनको पढ़ती गयी एक रहस्य पर से पर्दा भी उठता गया ।ये डाबर कम्पनी अपने शहद में इतनी मीठी मिठास कहाँ से चुरा लाती है ! अब जब हमेशा साथ में रहना है तो भई डायबिटीज़ तो होनी ही थी ..... और पत्र लिखने से भी । रही - सही कसर इस हाथ में थमे हुए मोबाइल ने पूरी कर दी । कभी रूठने पर गलती से , अब कभी -  गलतियाँ तो हर किसी से हो  ही जाती  हैं , किसी में मनाने की दुर्लभ कामना जाग ही जाए , तो बस एक मेसेज भेज दिया और हो गयी  कर्तव्य की इति ! दिक्कत तो तब आती है जब तापमान दूसरी तरफ का भी बहुत अधिक हो और उसने बिना पढ़े ही बस एक डिलिट का आदेश मोबाइल को थमा दिया । अब जरा सोचिये  इस संदेश की जगह वो पुराने जमाने वाला पत्र होता तो जब शान्ति छा जाती तो उसको पढ़ा जा सकता था । यहाँ तक कि फटा हुआ भी जोड़ - जोड़ कर पढने काबिल बना लिया जाता ! वैसे भी ये  मेसेज तो  लिखे भी जल्दी में जाते हैं और पढ़े तो उससे भी जल्दी में । कभी - कभी तो मेसेज बाक्स की सफाई में कई ऐसे अनपढ़े भी दिख जाते हैं ।

बस इसीलिये एक तमन्ना जागी है कि जाय  बसो परदेस पिया ...... हमारी कमी को भी समझो और थोड़ी सी मिठास वाला पत्र भेजो । अगर बाहर नहीं जाना है तो चलो थोड़ा समझौता हम भी कर लेते हैं , आफ़िस से ही ड्राइवर के हाथ पत्र भेजो । अरे भई जब लिखोगे तभी तो हमारी बारे में भी सोचोगे ...
                                                                                                                                                 -निवेदिता 

12 टिप्‍पणियां:

  1. खतो- किताबत बंद कराने में मुआ फ़ोन शत प्रतिशत जिम्मेदार है .

    जवाब देंहटाएं
  2. "इस संदेश की जगह वो पुराने जमाने वाला पत्र होता तो जब शान्ति छा जाती तो उसको पढ़ा जा सकता था । यहाँ तक कि फटा हुआ भी जोड़ - जोड़ कर पढने काबिल बना लिया जाता ! वैसे भी ये मेसेज तो लिखे भी जल्दी में जाते हैं और पढ़े तो उससे भी जल्दी में । कभी - कभी तो मेसेज बाक्स की सफाई में कई ऐसे अनपढ़े भी दिख जाते हैं ।"

    सामयिक सत्य कहा है आपने।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपने सही लिखा की,,,पुराने पत्र मिल जाने पर पुरानी सुखद यादें ताजा हो जाती है,,,

    recent post...: अपने साये में जीने दो.

    जवाब देंहटाएं
  4. पत्रों को पढ़ने का आनन्द ही अलग है।

    जवाब देंहटाएं
  5. आशीष जी की बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ क्यूंकि जो मज़ा आज भी पूराने खतों को पढ़ने में आता है वो sms पढ़ने मैं कभी नहीं आया और उसमें लिखी वो छोटी मोटी एवाइन टाइप कि शेर और शायरी जो आज भी होंटो पर मुस्कान ले आती है जैसे
    " ए ख़त खता न करना,कदमों में उनके जाके गिरना
    पूछें जो हाल मेरा झुककर सलाम करना"

    जवाब देंहटाएं
  6. अछि अभिव्यक्ति .....................

    जवाब देंहटाएं
  7. अरे भई जब लिखोगे तभी तो हमारी बारे में भी सोचोगे ...

    जवाब देंहटाएं