गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

सम्वादहीनता अथवा सम्वादों की सम्वेदनशीलता

        अक्सर गुरुजनों और मित्रों से सलाह मिलती रही है कि विवाद में पड़ने से अच्छा है कि सम्वादहीन हो जायें । आज सोचा इसी पर कुछ और मनन करूँ । अगर देखा जाए तो ये "सम्वाद" है क्या ! मुझे तो ऐसा ही लगता है कि अगर समता के स्तर पर कुछ सार्थक बातें हों तभी सम्वाद के मूल तत्व तक पहुंचा जा सकता है । प्रश्न यही है कि समता का स्तर माना किसको जाए ! सम्भवत: जब हम एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान कर पायें तब ही समानता का स्तर पाया जा सकता है । जब हम दूसरे को अपने समकक्ष पायेंगे तो निरर्थक विवाद से बच जायेंगे । विवाद तभी होता है जब हम दूसरे को खुद से कम आंकते हैं और सोचते हैं कि उस को हमारी सब बातें अनिवार्य रूप से माननी चाहिए।
          निरर्थक होने वाला विवाद असंतुष्टि को प्रेरित करता है और ये असंतुष्टि का भाव ही सम्वादहीनता की तरफ अनायास ही ले चलता है । अक्सर हम सोचने लगते हैं कि हम उस व्यक्ति के साथ बातें करके अपना समय व्यर्थ नष्ट कर रहें हैं ,यही भाव आत्मतुष्टि में बदल जाता है कि हम सही हैं और उस व्यक्ति से हम सम्वादहीनता का रिश्ता बना कर संतुष्ट हो जाते हैं ।
           किसी से इतनी दूरी बना लेना कि उससे बातें ही न करें ,मुझे नहीं लगता किसी भी समस्या का कोई समाधान है । ये तो असम्वेदनशील होना ही दर्शाता है । किसी भी समस्या का समाधान आपसी विचार-विमर्श से ही होता है । अक्सर बहुत छोटी-छोटी बातें भी आवाज़ खो जाने से , विमर्श न कर पाने से बहुत बड़ी हो जाती हैं । 
            सम्वादहीनता तो किसी के भी साथ नहीं होनी चाहिए ,क्योंकि ऐसी परिस्थितियाँ कई सम्बन्धों में छुपी हुई दूरियों को बहुत बढ़ा देतीं हैं । अगर हम बातें करतें रहतें हैं तब उस विवाद के मूल कारण और कारक का भी पता चल सकता है । एक तरह से देखा जाए तो जब भी हम किसी से बातें करतें हैं उसके प्रति कुछ अतिरिक्त रूप से सम्वेदनशील हो जाते हैं उसकी कठिनाइयों को भी हम समझने लगते हैं ....ऐसा करते ही उस तथाकथित विवाद का समाधान भी मिल जाता है । इसीलिये सम्वादहीन होने से बहुत अच्छा होगा अगर हम सम्वादों की सम्वेदनशीलता बनाये रखें !
                            -निवेदिता 

14 टिप्‍पणियां:

  1. सही फ़रमाया हम भी उलझन में हैं कि क्या कहें इस प्रवृत्ति को

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  2. अगर हम सम्वादों की सम्वेदनशीलता बनाये रखें,आपका कथन सही है,...

    सम्वेदनशील सुंदर बेहतरीन पोस्ट .

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  3. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... आपकी बात से सहमत हूं ...

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  4. जहाँ निश्चित हो कि कीचड़ में ही पैर पटकना है तब संवादहीन रहना ही बेहतर।

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  5. किसी से इतनी दूरी बना लेना कि उससे बातें ही न करें ,मुझे नहीं लगता किसी भी समस्या का कोई समाधान है । ये तो असम्वेदनशील होना ही दर्शाता है ..
    निवेदिता जी सुन्दर कहा ..पहले कारण देखो और निवारण खोजो चुप रह दूरी मत बना डालो ... ..जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  6. यह सबसे खतरनाक स्थिति होती है।

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  7. विवाद का रुख नारकीय हो तो ख़ामोशी सही है , पर किसी के हक़ में संवाद न हो तो आत्मा भी सम्वाद्विहीन हो जाती है

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  8. हमारे आसपास हर मनोवृत्ति के लोग मौजूद हैं , और देखने में सब के सब एक से एक सुदर्शन लगते हैं !
    आपसे में मनमुटाव होने पर उनके चेहरे पता चल जाते हैं अन्यथा सब बेहतरीन नज़र आते हैं ! बेहतर है कि सामान विचारों वाले लोगों से ही दोस्ती रखी जाए तो तकलीफ कम होगी !
    शुभकामनायें आपको !

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  9. संवाद से हर विवाद का विचारपूर्ण हल संभव है . बशर्ते की संवाद किसी लक्ष्य को पाने के लिए किया गया हो और पूर्ण अंतस से . संवादहीनता की स्थिति हमेशा कष्टदायक होती है.

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  10. सम्वादहीनता तो किसी के भी साथ नहीं होनी चाहिए ,क्योंकि ऐसी परिस्थितियाँ कई सम्बन्धों में छुपी हुई दूरियों को बहुत बढ़ा देतीं हैं
    .....सही कहा है आपने ... आपकी बात से सहमत हूं !!!
    पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...!

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  11. सम्यक वाणी हमेशा ही मंगल का कारण होती हैं ... आपने ठीक कहा संवादहीनता को बढावा देना ... मन में घृणा के विस्तार को तेजी से फैलाना ही हुआ ... और घृणा के बीज हमारे स्वभाव को विकृत करके और आगे बढकर हमारे अमंगल का कारण बनते हैं ... प्रेरणादायी रचना के लिए साधुवाद !!

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  12. सही है। बातचीत तो होते रहने चाहिये।

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