मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

बन गयी मैं कॄष्णमयी ..........


आज सोचा .......
अब तो जाऊँ 
अपने कान्हा के द्वारे 
वो भूला ही बैठा 
ना ना रूठा नहीं .... 
तेरे द्वारे आऊँ तो 
कान्हा क्या लाऊँ ?
मैं सुदामा नहीं 
कैसे तंदुल से 
काम चलाऊँ ......
लाऊँ भी तो 
उस सा भाव कहाँ पाऊँ !
कान्हा !
और किसी को 
कुछ न कहना 
ये तो राज़ है 
बस तेरा-मेरा 
जाती हूँ मधुबन को 
कुछ मोरपंख चुन लाती हूँ 
ला कर तेरे केश सवारूँ .....

ना कान्हा ऐसा क्या स्वार्थ 
पंख को मोर से अलग करूँ
तेरे लिए !
जो सबको मिलाता....
तेरे लिए वैजयन्ती बन जाती हूँ 
प्यार की महावर रचाती हूँ 
तेरी बंसी में सुर भरती हूँ
अरे ! ये क्या कान्हा 
तू तो बिलकुल न बदला 
मैं सपने चुनती रही 
निर्मोही ! तू राधा संग 
झूले की पेंग बढ़ाता रहा 

जा मै न लाऊँ कुछ तेरे लिए  
अब खोज ज़रा मुझको 
मैं तो झूला बन तेरे संग 
लहराती -बलखाती हूँ 
बन गयी न तेरे जैसी  कृष्णमयी  .......
                                -निवेदिता 

19 टिप्‍पणियां:

  1. जा मै न लाऊँ कुछ तेरे लिए
    अब खोज ज़रा मुझको
    मैं तो झूला बन तेरे संग
    लहराती -बलखाती हूँ
    बन गयी न तेरे जैसी कृश्न्मयी .......

    सुंदर पावन ..सम्मोहित करते भाव

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  2. बहुत सुन्दर भावों से सजी भक्ति रस से परिपूर्ण अच्छी रचना

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  3. सुंदर मधुर भाव-मय कविता..

    अधरं मधुरं - वदनं मधुरं
    मधुराधिपते रखिलं मधुरं

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  4. कृष्ण प्रेम में डूबी हुई मंत्रमुग्ध कर देनेवाली रचना....

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  5. जा मै न लाऊँ कुछ तेरे लिए
    अब खोज ज़रा मुझको
    मैं तो झूला बन तेरे संग
    लहराती -बलखाती हूँ
    बन गयी न तेरे जैसी कृष्णमयी .......
    आदरणीया निवेदिता जी बहुत ही सुंदर कविता बधाई |

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  6. कृष्ण प्रेम में डूबी हुई
    बहुत सुन्दर कविता, धन्यवाद

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  7. भक्ति रस में डूबी हुई बहुत सुन्दर भावमयी रचना..बधाई!

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  8. vaah, krishna bhagvaan par bhaktiras men sdoobi bhivyakti.unki chhavi hi aise hai ki mere jaise naastik ko bhi un par geet likhana padaa...

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  9. बहुत सुन्दर भावों से सजी भक्ति रस से परिपूर्ण अच्छी रचना|

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  10. भावनाओं और सच्चे अहसास के साथ लिखी गयी रचना , अक्सर ह्र्दय में झंकार पैदा करने में समर्थ होती है ! आप अपने मकसद में कामयाब हैं ....
    आप को हार्दिक शुभ कामनाएं ..

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  11. meeraa bhaav liye hain ye panktiyaan -
    main krishn -mya ho gai .
    sundaram ,manoharam !
    veerubhai .

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  12. भाव बहुत सुन्दर हैं इस रचना के ...दिल को छु गयी यह

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  13. सभी तत्व हैं कृष्णमयी जब,
    जीवन क्यों रुकना चाहे।

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  14. जा मै न लाऊँ कुछ तेरे लिए
    अब खोज ज़रा मुझको
    मैं तो झूला बन तेरे संग
    लहराती -बलखाती हूँ
    बन गयी न तेरे जैसी कृष्णमयी .......

    यही तो वो चाहता है प्रेममयी स्वरूप्।

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