शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

अरे ये क्या ........

              कभी सुबह -सुबह सड़क पर आ कर देखिये | वाह क्या मनमोहक दृश्य है | कैसी अच्छी हवा बह रही है | कुछ लोग वजन घटाने के लिए तो कुछ  स्वस्थ रहने के लिए दौड़ लगा रहे हैं | अरे ये क्या देख लिया जो नज़रों का स्वाद कसैला हो गया !                                   एक  छोटा सा बच्चा अपने से दुगनी लम्बाई का झाड़ू लिए सड़क साफ़  कर रहा है | कर दिया न आपकी प्यारी सी  सुबह का सत्यानाश  | चलिए छोडिये वापस घर को चलते हैं | एक प्याला गरमा गरम चाय के साथ अखबार पढ़ते हुए थोड़ा देश - बिदेश की सैर करते हैं | कुछ निहायत ही जरुरी मामलों पर अपनी राय देतें हैं | आप भी कहां इस बच्चे के बारे में सोच कर अपनी सुबह खराब कर रहे हैं |
            ये क्या  घरों से कूड़ा उठाने के लिए कूड़ेवाली के साथ उस के दो छोटे -छोटे बच्चे भी आये हैं और पूरी कोशिश कर रहे हैं कि ठेला सीधा हो जाए मगर ये मुआ ठेला सीधा होने की जगह पता नहीं  किधर -किधर मुड़ता जा रहा है | अजी छोडिये भी आप कहां   अपनी चाय ठंडी कर रहें है ज़रा सा आवाज दीजिये कामवाली को और इधर से निगाह फेरिये | पर ये क्या जनाब कूड़ा ले कर घर के अन्दर से फिर एक बच्चा ही निकलता है | अरे परेशान होने की कोई भी जरुरत नहीं है | जानते हैं क्यों ? क्योंकि ये आपका नहीं बल्कि आपके घर काम करने वाली का बच्चा है | सच ये तो आप के साथ अत्याचार हो रहा है | चलिए स्नान -ध्यान कीजिये  अपने काम पर भी तो जाना है | जल्दी - जल्दी में चाय पीना तो रह ही गया | सामने ही तो होटल है दो पल तो वहां बिता ही सकते हैं | लीजिये भाई यहां भी वही समस्या चाय के प्याले ले कर बदली हुई शकल में एक और बच्चा !  ये तो बड़े भाई कोई साज़िश लगाती है आप के खिलाफ | सुबह से इन बच्चों ने नाक में दम कर रखा है |चाय का प्याला तक सुकून से नहीं मिला |
            मै भी आप से सहमत हुं | वाकई इन छोकरों ने तो परेशान ही कर दिया है आपको | बस एक सवाल -- आपने परेशान होने के अलावा और क्या किया इन बच्चों के लिए  ? उन बच्चों से काम करवाना उनके माता - पिता के लिए मज़बूरी हो सकती है | ये वो धनाभाव की वजह से ही कर रहे होंगे अथवा अज्ञानता के फलस्वरूप | हम तथाकथित संपन्न और संभ्रांत वर्ग के हो कर भी सिवा तरस दिखाने अथवा भाषण देने के अतिरिक्त और क्या करते हैं ? ये प्रश्न हम खुद अपने आप से करें तभी कुछ बेहतर और सार्थक दिशा पा सकेगें | इस के लिए किसी संस्था की आवश्यकता नहीं है | अगर उन बच्चों के अभिभावकों से बात करें तो पता चलेगा कि जो  तमाम सरकारी योजनायें आई है उन के बारे में उन्हें पता ही नहीं | मुफ्त मिलने वाली शिक्षा के बारे में उन्हें पता ही नहीं | चलिए इतनी मेहनत नहीं कीजिये | सिर्फ ये करतें हैं किसी भी एक बच्चे की फ़ीस आप दे कर उन को स्कूल पहुचां दीजिये | विश्वास कीजिये  इसमें आने वाला खर्च सिर्फ उतना ही होगा जितने में आप एक बार किसी होटल में खाना खाते हैं या एक फिल्म देखेगें , लेकिन इससे मिलने वाला सुकून बहुत ज्यादा होगा |
             अगली बार जब भी किसी ऐसे बच्चे को देखें तो थोड़ी सी जवाबदेही खुद भी महसूस कीजिएगा और सोचियेगा |
            -----  निवेदिता 

8 टिप्‍पणियां:

  1. ये दृश्य केवल एक जगह ही नहीं सभी जगह है.कानपुर में था तो चाय की दूकान पर काम करने वाले बच्चे को कुछ खिला दिया करता था जो दुकानदार को अखरता था.
    निश्चित रूप से हम सबको जवाबदेही तो महसूस करनी ही होगी. लेख झकझोर देने वाला चित्र प्रस्तुत करता है.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सही लिखा .. सोंचने वाली बात है .. सिर्फ भाषण देने के सिवा हमलोग और करते क्‍या हैं ??

    जवाब देंहटाएं
  3. चिन्तनीय विषय हैं यह, बचपन व्यर्थ न हों।

    जवाब देंहटाएं
  4. bahut sahi kaha apne. umeed karta hu ki jo bhi apki ye post parhe us par kush to asar ho. vaise meri atma ko is baat se mukti hai kyuki jo baat apne kahi hai vo main pehle se hi kar raha hu.
    apka shukriya

    जवाब देंहटाएं
  5. बचों के लिए नियम होना चाहिए की अगर बच्चा स्कूल नाहे जाता तो माँ बाप को अन्दर करो....
    फिर कुछ सुधार हो सकता है....

    जवाब देंहटाएं
  6. .

    अनुकरणीय सुझाव के साथ एक साथक आलेख।

    राजेश जी की भी बात से सहमत , कुछ कठोर नियम भी होने चाहियें।

    .

    जवाब देंहटाएं
  7. आपका सुझाव उत्तम है ... प्रयास करना चाहिए ... तभी समाज संवेदनशील बनेगा ...

    जवाब देंहटाएं
  8. आप सब का आभार ।
    किसी भी अच्छे काम से संतुष्ट हो कर नही बैठना चाहिए अपितु इसकी एक जंजीर बनानी चाहिए और प्रयास करते रहना चाहिए |

    जवाब देंहटाएं