शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

जीवन की आपाधापी में........

जीवन की आपाधापी में
जीवन के ताने बाने में ,
मैं प्यार निभाती ही रही
प्यार दिखा न पाई  !
दायित्वों के तले
कर्म करती ही रही , 
मुस्कान बिखेरती ही रही
मुस्करा न सकी !
तुम को सुलाने में 
 ख़ुद मैं कभी  सो न पाई,
तुम्हे लिख़ना सिखाने में
ख़ुद लिखना भूल गई!
अब इस सान्ध्यकाल जो देख़ा ,
कुछ भी न मैंने ख़ोया है !
देख़ मेरे चेहरे की हल्की शिकन ,
तुम भूल जाते हो मुस्कराना
मेरे हल्की सी लड़खड़ाहट पर ,
दौड़ आते हो थामने मुझ को
मेरे आवाज़ की उदासी ,
कैसे महसूस कर जाते हो 
कैसे कहूँ मैंने कुछ ख़ोया ,
सारा जग तुमने तो दे डाला
ये सुक़ून भरी नींद  ,
उन जागी रातों पर वारी हैं 
मेरे चाँद -सूरज ,
मेरी दुनिया के सितारों
तुम्हारी मीठी रौशनी ,
सच यही तो मेरे मन-आंगन
में महकती-खिलखिलाती चमक है !

9 टिप्‍पणियां:

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  3. शीर्षक को सार्थक करती दिल को छू लेने वाली कविता.

    सादर
    -------
    मैं नेता हूँ

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  4. ईश्वर से प्रार्थना है बस ऐसे ही हमारे चांद-सूरज सारे जहां को रोशन करते रहें ।

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  5. बहुत सुन्दर लिखा है |बधाई
    आशा

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  6. आपकी कविता से प्रेरित पंक्तियाँ।

    प्यार निभाना सबको आया, प्यार दिखा न पाया कोई,
    सम्बन्धों के नाम पे मैंने, कर्तव्यों की गठरी ढोई।

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