शनिवार, 18 दिसंबर 2010

मौत...

मौत .....
तू ही एक ,
इकलौता सच है ,
शाश्वत सच ..।
हां ये भी सच है ,
कि तुझ से
मिलना कोई नहीं चाहता ,
मिलना तो दूर
सोचना भी नहीं चाहता
फ़िर भी
बिना किसी की
चाहत के ,
 बिना किसी  के
स्वागत के
तू आ ही जाती है
कभी भी ,
कहीं भी ,
किसी को भी ,
कैसे भी ,
जिसको बचाने को
दुआ सब करें
उसे भी ,
लेकिन ...
सच में
एक बहुत बडा
अन्याय है तेरा
जिसके मरने की दुआ
सब हैं करते ,
उसको ही अनदेखा
कैसे कर जाती ?
तू मौत है
अंत है
अनंत है
फ़िर भी तुझ में
आयी कहां से
ये इनसानी फ़ितरत
अनचाहे को चाहने की ,
जिसकी जरूरत हो ,
उसको ही चाह के ,
साथ ले जाने की ...
लेकिन तेरे लिये तो
सब है माफ़ ,
क्यों कि तू..
तू तो है
सिर्फ़ और सिर्फ़
मौत.....
     -निवेदिता 

3 टिप्‍पणियां:

  1. गुलज़ार साहब की पंक्तियाँ याद आ गयीं.. मौत तू एक कविता है... मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको....

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  2. जिन्दगी सत्य है मौत शाश्वत है.....

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